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सौरभ के समक्ष सारे सौरभ फीके थे।
मुनि चम्पक इसी बकुल वृक्ष की भांति थे। उनमें स्वपूरुषार्थ से अजित और संचित वह सुरभि थी, जो सारे वातावरण को सुरभिमय बना देती थी। उस सुरभि का एक घटक था-सहयोग, उपकृति । उनका पुरुषार्थ दूसरे के सहयोग में सदा प्रज्वलित रहता था। वे सहयोग देते, पर जताते नहीं। सहयोग देना उनका सहकर्म था। वे इसे कर्त्तव्य की श्रेणी का कर्म मानते थे और जो भी सहयोग की आकांक्षा करता, वह उसे मिल जाता और यदा-कदा अनाकांक्षित व्यक्ति को भी इनका सहयोग उबार लेता।
वे संवेदनशील थे। जिसका मन संवेदना से जितना भरा होता है अनुभूति उतनी ही तीव्र होती है । जब व्यक्ति इन अनुभूतियों को शब्दों में उतारता है तब वह काव्य बन जाता है और व्यक्ति कवि बन जाता है। जिसमें अनुभूति की तीव्रता नहीं होती, वह अच्छा कवि नहीं होता। कांच जितना स्वच्छ होता है, उतना ही स्वच्छ होता है प्रतिबिम्ब । यही प्रतिबिम्ब बिम्ब की अनुभूति कराता है और व्यक्ति को उससे एकात्म बना देता है। भाईजी महाराज संवेदनशील थे। उनकी इस संवेदना ने उनको मृदु, सरस और उन्मुक्त बनाया। वे बालकों में बालक, तरुणों में तरुण और बूढ़ों में बूढ़े बन जाते । हृदय निश्छल और पारदर्शी था। प्रत्येक व्यक्ति उसमें अपना प्रतिबिम्ब देखकर अपनत्व की कारा का बंदी बन जाता था। फिर 'मैं' और 'वह' की दूरी समाप्त हो जाती और तादात्म्य की अनुस्यूति गाढ़ बन जाती। ____ आदमी बाह्य जगत् में विहरण करता है । अनेक परिस्थितियों और घटनाओं के बीच से वह गुजरता है। उनमें से जो घटनाएं हृदय को खींच लेती हैं, व्यक्ति उनसे तादात्म्य स्थापित कर अपनी अनुभूतियों को शब्दों का परिधान देता है और वे काव्य के माध्यम से बाह्य जगत में फैल जाती हैं। जब अन्यान्य व्यक्ति उन अनुभूतियों को शब्दों के परिधान में देखता है, तब उसे अपनी जैसी ही अनुभूतियों का परिवेश स्मृति-पटल पर अंकित-सा नजर आता है और तब वह उनसे अभिभूत हो जाता है । एक की अनुभूति लाखों-करोड़ों की अनुभूतियों को ताजा कर जाती है। यही है काव्य और यही है काव्य की सार्थकता।
चम्पक मुनि ने जीवन में अनेक आरोह-अवरोह देखे हैं। इस उतार-चढ़ाव में जो-जो अनुभूतियां हुईं, उनको यदा-कदा उन्होंने शब्द-बद्ध किया और जब उनको गुनगुनाया, वे लिपि की कारा में आबद्ध हो गई। . मैं नहीं मानता कि मुनिश्री जन्मजात कवि थे । कविता उनका कर्म नहीं था। पर वे काव्य-रसिक अवश्य थे । आचार्यश्री तुलसी के पट्टोत्सव पर, आचार्य भिक्षु के चरमोत्सव तथा माघ महोत्सव आदि विशेष उत्सवों पर आपकी गीतिकाएं
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