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मोहनलालजी खटेड़ (लाडणू) की याद में
बोहा
भाई मोहनलालजी, श्रावक कर अनशन-आराधना, कीन्हो
उभय पक्ष निर्मल कर्यो, पायो जन्म प्रमाण । ज्ञान-ध्यान स्वाध्याय मैं रहता आगेवाण ॥ २ ॥
सुघड़ सुजाण । स्वर्ग - प्रयाण ॥ १॥
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कहता कम, सुणता घणी करता जुगती जाण । थोडे में सलटावता, तज मन खींचा ताण ॥ ३॥
हमदर्दी हृद हिम्मती, सुविवेकी दाठीक | लल्ले-चप्पे स्यूं पर, वर निस्पृह निर्भीक ॥४॥
कहणं री मुंह कही, बण कर बे-परवाह । हि कहरी अन्त तक, कहो कुण पायो थाह ॥५॥
सलाह लेवता सैकडां, देता हित-मित सीख । भारी चिड़ ही झूठ स्यूं, गिण्यो न दूर नजीक || ६ ||
नित निर्मल करणी करी, स्वाभिमान युत नेक । 'चम्पक' भाई सैकड़ों (पर) मोहन-सा कोइ एक ॥७॥
१६४ आसीस
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