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सेठ भंवरलाल दूगड़ की याद में
दोहा
विज्ञ, विवेकी, वैद्य बो, धीर, वीर, गंभीर । माखण ज्यूं पिघलत हियो, परख पराई पीर ॥१॥
दरद्यां पर दिल री दया, रोग्यां रो हो राम। दुखियां री 'भंवरू' दवा, थाक्यां रो विश्राम ॥२॥
जाणकार जस हाथ मै, निरधनियां स्यूं नेह । गिणी न आधी-पाछली, 'भंवरू' आंधी-मेह ॥३॥
सेठां रै घर रो रह्यो, रजवाड़ी सम्मान। (पर) 'भंवरू' मै देख्यो नहिं, दर मै मान-गुमान ॥४॥
सीधो-सादो संजमी, सन्त-सत्यां रो दास । सोनो 'चम्पक' सोलवू, 'भंवरू' रो विश्वास ॥५॥
फुलड़ां पर भंवरा फिरै, फिर्या भंवर पर फूल । विधना ओ के बे-बगत, करगी ऊल-पंचूल ।।६।।
सेठां ! अब सेंठा रयो, सगला कहै समझाय। (पर) 'चम्पक' चतुरां चित चढ्यो, 'भंवर' न भूल्यो जाय ॥७॥
यादगारां १६३
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