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हणूतम लजी सुराणा (चूरू) के प्रति
दोहा
हाजर सेठ हणूतमल, हरदम शासण हेत। सब स्यूं ऊपर समझतो, सदा सुगुरु संकेत ॥१॥
संघ-द्रोही स्यूं स्वप्न मै, भी नहिं मिलती रूह। गण-गणि री गमती नहीं, चम्पक ऊह-पचूह ॥२॥
'चम्पक' बो जलम्यो नहीं, रुकण झुकण री रात। टाली कदे न टेम पर, सेठाणी री बात ॥३॥
आदर' गे फादर अवल, संत-सत्यां रो भक्त । 'चम्पक' कदे न चूकतो, वक्त व्यक्त अव्यक्त ॥४॥
जी-सा सुणतां झिझकतो, 'अम्मापिउ' समाण । दृढ़-धर्मी चम्पक' खरो, (वो) दिया ठिकाणे प्राण ॥५॥
१. आदर्श साहित्य-संघ ।
यादगारी १६५
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