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आंख की दुवाई
कानां री किट्टी तथा, उठतां वासी थूक । सन्तां ! घालो आंख मै, अंजन अजब अचूक ।।३०॥
चम्पा पड़ज्या पितरडो, गुडनै जरा तपा'र'। एक आंगली आंज कर, बाकी बांधो वार ॥३१॥
नाक री फुणसी पर
फुणसी निकलै नाक पर, टीकी द्यो घिस लूंग। अथवा काली मिरच की, भूल तैल मत सूंघ ।।३२॥
हो ज्यावै रूं-तोडियो फुणसी उठे विषेली। रगड़ अफीम लगाय द्यो, संता ! सारां पेली ॥३३॥
ताव-बुखार, शरदी-जुखाम
ज्वर नै भूखी राखणी जुखाम पथ्याहार । मांगै सन्तां ! मानल्यो, नेक सलाह सुखकार ॥३४॥
ताती मिसरी चाबकर, गरम उदग पी त्याग । करो सांझ का सन्त जन, शरदी जासी भाग ।।३।।
लंग सुंठ अजवाण ल्यो, पीपल तुलसी पत्र । घाल लूंण पंच मेल को, घासो बड़ो विचित्र ॥३६।।
दीपन पाचन ज्वर-हरण, दोष-शमन हित दोय । गोलीद्यो संजीवनी, काया कंचन होय ॥३७।।
बीस पीस काली मिरच, काढ़े विधि उपरान्त । छांण, ठार, पीवै कट, मलेरिया री रान्त ।।३८॥
१. एक बूंद नींबू रस मिलाकर ।
१४८ आसीस
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