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कबजी हुवै तो
इसब गोल हरडै नमक, ल्यो जो हो अनुकूल । कब्ज रोग रो मूल है सन्तां ! करो न भूल ॥६॥
पेट-दर्द
पेट-दर्द असह्य तो, सांभर घी मै सांध। द्यो समाधि झटपट हुवै, सन्तां ! धीरज बांध ॥१०॥
आधो हलदी-गांठियो, रगड़ छाछ मै चाटै। असर तुरत 'चम्पक' कर पेट-दर्द नै दाटै॥११॥
आधण सरिखो गरम जल, कप भर ल्यो मुनिराय । घोल चमच चीणी पिओ, पेट आफरो जाय ॥१२॥
छव मासा भर सुंठ मै, मासो कालो लूण। उदर शूल में फाकतां, इन्जेक्सन सो सूंण ।।१३।।
संठ मिरच इक इक पिपल, साजी जरा मिलाय । घस तातै जल स्यूं पि, पेट-शूल मिट ज्याय ॥१४॥
बादी-गेस
सुंठ रेत मै सिकी हुवे, कालो नमक मिलाय। दो दो रत्ती भातरा, गेस पेट रो जाय ॥१५॥
धणियै री गूली दुणी मिसरी जीम्यां वाद। फाकी लेलै गेस हर 'चम्पा' ! छोड़ प्रमाद ।।१६।।
पीपल १ लंग १ सोडो मिठो, चमठी पीपरमेन्ट । लै भोजन के बाद मै, गेस मिटै अरजेन्ट ॥१७॥
आंव में
सौंफ झूठ छीपा हरड, मिसरी तिणी मिलाय । फाकी आठाना भरी, आंव पुराणी जाय ॥१८॥
१४६ आसीस
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