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मन देखे जद ही करै, 'चंपक' हसी विनोद । सुण विरोध-प्रतिशोध रो, तूं खाडो मत खोद ।।४६।।
कहणी कदे न काम की, खाण-पाण असुहाण । 'चंपक' निकले चित्त नै, चीर बचन को बाण ॥४७॥
फुटकर फूल १३७
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