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'चम्पक' चढ्यो समाज रो, शिर पर मोटी कर्ज । देणो लेणो आपसी, (है) साधारण सो फर्ज ॥१३॥
घणा हुसी खाकर खुशी, हाथ पेट पर फेर। खुवा दूसरै नै खुशी, 'चम्पक' कोइक दिलेर ॥१४॥
एक दालियो भी दकी!, दूजो सके न चाख। 'चम्पक' मत बेचैन बण, भाग भरोसा राख ।।६५॥
आयो हो जद एकलो, जासी एकाएक । झामल झोलो बीच मै, टेको 'चम्पक' टेक ॥१६॥
दीन और दुनियां दोउं, सझै न एकण साथ । 'चम्पक' दिन ₹ च्यानण, रहण सके न रात ॥१७॥
नीयत सारू नीसर, अन्त नतीजो नेम । 'चम्पक' चींधी चोर कै, पीपल चढे न पेम ॥९८||
झूठ छिपायो कद छिपे, 'चम्पक' चोडै आय।। फल दो दिन पेहली पछै, अन्त गतां स्यूं जाय ।।६।।
साच रहेला साच ही, झूठ आखरी झूठ । साची 'चम्पक' सामने, झूठ चलै परपूठ ॥१००।।
आंख कान मै आन्तरो, 'चम्पक' आंगल च्यार। दूरी देखण सुणण री, कहतां पड़े न पार ॥१०॥
कान राग-रसिया खुशी, रंग रूप मै नैन । चाट बटोड़ी जीभड़ी, 'चम्पक' पड़े न चैन ॥१०२॥
सोतां मोत सिरावते, जाग्यां साहमी जाण । 'चंपक' चोकस चालणो, सुण मन-मीत ! सुजाण ।।१०३।।
मिली जकी मै ही मिनख !, सावल करले सन । जाणो 'चम्पक' इक जग्या, का मसाण का कब्र ॥१०४॥
शिक्षा-सुमरणी १२६
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