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'चम्पक' लिछमी चचला, इण रो के इतबार । कुण ल्यायो कुण लेयग्यो, तो के री तकरार?॥८॥
'चम्पक' चौड़े आयला, आज नहीं तो काल । धन-धरती दोनूं दकी !, है सरकारी माल ।।८२॥ 'चम्पक' धन भेलो करै, चूस-चूस कंजूस । कोड़ां पकड़ीज्यां पड़े, देणी लाखां घूस ।।८३।।
दीपक बुझग्या दीपता, 'चम्पक' चब्या सुपर्व । राज गया, राजा गया, गेहला ! क्यां पर गर्व ? ||८४॥
धरणी रो धन धरण मै, धरयो रहेला लार। खोटा तूं क्यां नै घडै ?, 'चम्पक' जरा विचार ।।५।।
'चम्पक' किण-किणरो चल्यो, गेहला! गर्थ गुमान। मिलसी अंत मसाण मै, सगला एक समान ।।८६॥
कुण किण रै तकदीर रो, जोड़-कोर धर जाय। रखवाली 'चम्पक' रखै, कुण खरच कुण खाय ।।८७।।
संचै मो-मोखी शहद, अधिकी 'चम्पक' आश । अति संचय रो सामनै, प्रतिफल पड्यो खुलास ।।८८॥
खतरो सोनो है खरो, जाणै सब संसार । 'चम्पक' सोह क्यूं चूंटकर, (आ) ले ज्यासी सरकार ॥८६॥
सोनो सरकारी हसी, घणी नहीं है देर। 'चम्पक' चूकैला जको, पिछतावैला फेर ।।६०॥
जोखो मोटो जीव नै, 'चम्पक' अब भी चेत। सोनै रो स्याणा मिनख !, हटा हृदय स्यूं हेत ॥६॥
देतां जी दोरो हवै, खरचै नहीं छदाम । 'चंपक' संग चाले नहीं, (ओ)धन आसी के काम ? ॥१२॥
१२८ आसीस
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