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डोर हाथ मैजो हुवै, (तो) ल्यावै पतंग मरोड़ । 'चंपक' कूंची हाथ, मैं (तो) सगला आसी दौड़ ॥ ४५ ॥
डूब मुरख डफोल क्यूं, खोद हाथ स्यूं खाड । 'चंपक' रुखवालो लुटै, खेत खायगी बाड़ ॥ ४६ ॥
छोटां ने छिटका मती, चाढ़ 'चंपक' छोटो सो चिणो, कणां
'चंपक' चेतो कर चतुर ! चित मत वकरी चाढ़ । अंतसकै आवेश नै, मुंहडै स्यूं मत काढ़ ॥ ४८ ॥
चिणारै झाड़ । भांजदै भाड़ ॥४७॥
एकेक तो कचरो बणै, बहु मिल बणै बुहारी । तिण स्यूं घण नहिं त्यागणो, 'चम्पक' रख इकतारी ॥४६॥
घण रो मत गहरो घणो, पड़े मती प्रतिकूल । जीते घण ही जगत मै, 'चम्पक' बण अनुकूल ॥५०॥
जन-मत सब कुछ जगत मै, 'चम्पक' देखो जाय । जनमत स्यूं विपरीत जन, घर-घर धक्का खाय ॥५१॥
गलै सुदी गण मै गड्यो, रह 'चम्पक' पग रोप । शान्त स्वतः ही समय स्यूं हुवै कोप - आरोप ॥५२॥
शान्त चित्त 'चम्पक' सदा, कार्य व्यस्त विश्वस्त । रहणो अपण हाल मै मस्त स्वस्थ आत्मस्थ ॥५३॥
सावधान रहणो सुघड़, संयम में प्रति सास । हित खोवै जो हाथ स्यूं, 'चम्पक व्यर्थ विकास ॥ ५४ ॥
चित मै चासी च्यानणो, हित रख करै मती नाहक अती, अन्त
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'चम्पक' हाथ | अंधेरी रात ॥ ५५ ॥
आकर झट आवेश में, बक
ज्यावै
बे- फेम | स्याणपरी 'चम्पक' खबर, पड्यां करें बी टेम ॥ ५६ ॥
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शिक्षा - सुमरणी १२५
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