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________________ प्रेम हृदय री देण है, है व्यवहार दिमाग । फूल बिना फूल कठे, 'चम्पक' प्रेम-पराग ॥३३॥ करसी सो भरसी दकी ! धक्कै धिक न पोल । तो कांदां रा छूतका, 'चम्पक' तूं मत छोल ॥३४॥ 'चम्पक' होकर ही रहै, होणी अपण आप। नेता री निष्पक्षता, छोडै दिल पर छाप ॥३५॥ बैर मिटै नहिं बैर स्यू, बुझै न घी स्यूं आग। कादै स्यूं 'चम्पक' धुपै, कद कादै रो दाग ? ॥३६॥ दुर्व्यसनी देख्या दुखी, सदा सुखी गुणवान । हलको जीवन हर समय, राखै 'चम्पक' मान ॥३७॥ साच, साच 'चम्पक' सदा, झूठ अन्त है झूठ। छिन मै जावै झूठ स्यूं, प्रेम-प्रीत, मन टूट ॥३८॥ झूठ रो 'चम्पक' जमै, एक बार विश्वास। धग्-धग् अन्तर धड़कतो, रहसी अन्त उदास ।।३।। अति-परिचित स्यूं अर्थ रो, बणै जितै व्यवहार । करो मती 'चम्पक' कहै, स्वारथियो संसार ।।४०॥ 'चम्पक' विनय विवेक बिन, व्यर्थ बाह्य व्यवहार । बगत देखकर बरतणो, साचो शिष्टाचार ॥४१।। डिगू-पिचं डिग-मिग करै, घड़-घड़ ओघट घाट । 'चम्पक' समकित चरण मै, उलटो कर उचाट ॥४२।। डोको फाड़े डांग नै, तिल ले चाल्यो ताड़। 'चम्पक' छिपग्यो छोकरां! राई ओले पहाड़ ॥४३॥ डिगली चूक डफोल स्यूं, राख न 'चंपक' राड़। ओछै मुतलब नै अधम, बोलो करै बिगाड़ ॥४४॥ १२४ आसीस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003057
Book TitleAasis
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1988
Total Pages372
LanguageMaravadi, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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