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चम्पक चिड़-भिड़ स्यूं हुवै, घर मै घणो बिगाड़। भुन न्हाख सद्भावना, मनोभेद की भाड़ ॥२१॥
दर्दी नै दीस जियां, अपणो दर्द अमाप । त्यूं दोषी यदि देखले, (तो) 'चम्पक' पलै न पाप ॥२२॥
पक्ष-पात रो पादरो, पड़सी क्यं न प्रभाव। थोथी तर्का स्यूं तण, 'चम्पक' और तणाव ।।२३।।
'चम्पक' चोड़े बातां-बातां मै
सूगली, सापा-दूती साव । बढे, दिक्कत और दुराव ॥२४॥
हाथ-हाथ स्यूं यदि घस, (तो) गरमी बढे विशेष । बात-बात री घर्षणा, 'चम्पक' करदै क्लेश ॥२५॥
बंधी मुट्ठी रहण दै, 'चम्पक' चतुर विचार । भर्यो भरम ही है भलो, हाथ पसार्यो हार ॥२६॥
सन्तां ! शासण रो सदा, हित आपरै हाथ । चम्पक चालो चेत कर, सगला नै ले साथ ॥२७॥
नेता नितरण लागग्या, चलै दुतरफी चाल। 'चम्पक' किण नै दोष दै, कुदरत करै कमाल ॥२८॥
अठी-बठी री बात स्यूं, टूटै हार्दिक हेत। 'चम्पक' अवसर हाल है, चेत सके तो चेत ॥२६॥
कित्ती मेहनत स्यूं घड़ो, त्यार करै कुंभार। चटकै फटकै फूटतां, 'चम्पक' लगे न बार ॥३०॥
सड्या-गल्या जूना पड्या, मुरदा मती उखेड़। छुट-पुट छेड़ा छेड़ स्यूं, 'चम्पक' कठै निवेड़ ? ॥३१॥
द्वंद्व दिमागां मै भर्यो, दिल में खड़ी दिवार। भीतरलो भेद्यां बिना, 'चम्पक' नहिं प्रतिकार ।।३२।।
शिक्षा-सुमरणी १२३
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