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शासण दुर्लभ देवरो, शासण पूजा-पाठ | शासण ₹ परताप ही, 'चम्पक' सगला ठाठ ॥ १० ॥
२ आस
शंख दक्षिणावर्त है, संघ श्वेत- मन्दार | चिन्तामणि 'चम्पक' चहक, वांछित फल दातार ॥। ११॥
मानसरोवर, मलयगिरि, मख - मयूख - मोहार' । मंगलमय, शासण मुदित, 'चम्पक' चरण पखार ॥ १२ ॥
विद्या स्यूं बेसी बधै, विकट अनास्था आज । 'चम्पक' चौड़े चोक मै, सोचो सुज्ञ समाज ॥ १३॥
बिना हिलायां ओझज्या, लोकोक्ति प्रख्यात । सूती रा पाडा जणै, 'चम्पक' चोड़े बात ॥। १४ ।।
गुड़- लिपटेडी बात स्यूं, राजी 'चम्पक' लागै चबड़को, साच
सापा
-दूती स्यूं सरै, भले पर 'चम्पक' चौड़े पड्यो, बुरो
संघरषण स्यूं संघ मैं, 'चम्पक' पड़े दरार । भीतर ही भीतर धुकै, अणबोली तकरार ॥ १७॥
रहे समाज । सुणायां आज ।। १५ ।।
नेता निरवालो रहै, (तो) बधै न वाद-विवाद | 'चम्पक' कम - बेसी नमक, करै खाद्य बेस्वाद ||१८||
स्याणां 'चम्पक' सोच तूं थारै डावी- जीवणी,
यज्ञ का प्रकाश-द्वार ।
कितोइ काम |
अन्त परिणाम ॥ १६ ॥
सांय-साय सुलग सतत, दिन भर दिल रु दिमाग । 'चम्पक' बातां स्यूं कदे, बुझे न अन्तर- आग ।। १६ ।।
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मत इकतरफी तांण । दोन्यूं एक समान ॥ २० ॥
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