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षट् - द्रव्यात्मक' लोक, सृष्टि सजीव अजीव री । संतति संक्रम सोधो सोनो साधकां ! ॥६७॥
रोक,
षट् प्रमाद' परिहार, षट् पलिमन्धु' न षट् प्रतिक्रमणाचार, सदा साचवो
४
षट् सद्गुण सम्पन्न हुवै श्रमण गण स्तंभ सो । प्रतिभा प्रभा प्रपन्न, संघ सम्पदा साधकां ! | ६६ ॥
साम्य-योग ल्यो साध, सब समान सुख-दुख स्वगत | स्वानुभूति रो स्वाद, सुधाश्राव है साधकां ! | १०० ॥
सन्त समागम सार, सामेलो साझो सविधि | स्वागत युत सत्कार, शासण शोभा साधकां ! | १०१ ॥
आचरो । साधकां ! |८||
सद्गुरु शीख सचोट, स्वीकारो सम्मान स्यूं । सविनय चरणां लोट, सत्य सुझाओ साधकां ! | १०२ ॥
है अपने ही हाथ, अपणी इज्जत आबरू । राख याद दिन रात, सलाह, संचरो साधकां ! ॥१०३॥
हुवै न कदे हताश, लाख-लाख शाबास,
हंस- वृत्ति हिय-हेज, हंसमुख हर्यो भय रहै ।
( वो) अतिशायी आदेज, स्हेज तेज लहै साधकां ! १०५ ॥
११६ आसीस
आपो नहि दे आपरो ।
बीं साधक नै साधकां ! | १०४ ॥
१. धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, पुद्गलास्तिकाय, जीवास्तिकाय, काल ।
२. मद, विषय, कषाय, निद्रा, आलस्य और प्रतिलेखना ।
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३. चपलता, वाचालता, चक्षु-कुशील, चिड़चिड़ापन, अति लोभ और निदानसंकल्पी |
४. सामायक, चौबीसस्तव, वन्दना, प्रतिक्रमण, कायोत्सर्ग और पच्चक्खाण । ५. श्रद्धालु, सत्यवादी, मेधावी, बहुश्रुत, शक्ति सम्पन्न और प्रशान्त-चित ।
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