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राग-रीस है दाग, त्याग विराग-पराग मै। अन्तर धुकती आग, शान्त करो सत साधकां!।८६॥
राग-रसिक, रमणीक, रूप-रसिक, रसना-रसिक । लोप लाज-लय-लीक, सदा सिदावै साधकां!८७।।
लक्खण लक्ष्य रु लेख, लाख लुकायां नहिं लुकै। केक भेख मै छेक, ससंकेत कहुं साधकां!1८८।।
लय, लत, लीक, लिलाड़, लारै लग्या लट्ररिया। दैवै बात बिगाड़, सापादती साधकां!।८।।
लाखां-लाखां लोक, लुल-लुलकर लटका करै। संयम श्लोक विलोक, सद्गुरु कृपया साधकां!।६०॥
वरत जो विपरीत, टालोकड़ गण स्यं टलै । अपछन्दा अवनीत, संगत छोड़ो साधकां!६१॥
विट्टल रो विश्वास, कोइक विट्टल ही करें। शासण रो इतिहास, साखी साहमै साधकां ।२।।
विज्ञ वणिक व्यवसाय, क्रय-विक्रय विणजे विविध । आंकां आंकै आय, सामायक-धर साधकां !।६३॥
शम-दम मै खम-ठोक-जम, नमकर रम विगम तम । जो द्यो प्राक्रम झोंक, (तो) सुगम सुसंयम साधकां !।६४॥
शान्त मना शुभ सोच, विष पीकर शंकर बणो। शिवं स्वात्म संकोच, श्रेयस्कर है साधकां!।६।।
शासन शास्ता शान, शोधित शुद्ध सुशासना। सगला एक समान, स्व-पर न समझ साधकां!।६६॥
साधक-शतक ११५
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