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________________ बधतो जाय बिगाड़, द्रष्टा देखै है खड्या। कुण झोले मै झाड़, साहम सकैला साधकां!।७४।। बातां री बंभेर, घोड़ा दौड़े कागजी। (मैं) लागू खारो जेर, सीधो बोल्या साधकां!७५॥ भीतर-भीतर भेद, बधै बेल विष री बुरी। ऊंडी जठै उमेद, शिल सपाट है साधकां!।७६।। भावां मै ल्यो भांप, सुस्त देख मुनि सम्पदा । जाय कालजो कांप, सूता-सूतां साधकां!।७७।। भभकी जसरी भूख, चूंच बाहिरी चिड़कल्यां। चूंचूं कर अचूक, सिट नहीं सीझै साधकां ॥७८।। महामना ! मनुहार, मानो मन मोटो करो। मेट खार, मन मार, सब मै रलज्यो साधकां!७६॥ मननशील ! महामान्य ! मरम मरक मारो मती। अभिमत हुयां अमान्य, सल मत घालो साधकां11८०।। मिनख, मेह, मत, मोत, मोती मांग्या कद मिलै ? जगै जोत स्यूं जोत, जदि संयोजक साधकां!।१॥ याद करो आयात, के निर्यात कर्यो ? कुशल ! रीतो ही दिनरात, रह्यो क? सोचो साधकां!!८२॥ यांत्रिक-युग में योग, प्राणायाम प्रयोग है। व्यायामज व्यपयोग, शुभोपयोगी साधकां!।३।। यात्रा आळू याम, यायावर है यति-व्रती। पालां संयम-स्थाम, सुखसाता स्यूं साधकां!८४॥ राखो द्रष्टा-भाव, एक दृष्टि इण सृष्टि में। लागणद्यो न लगाव, शीस की ज्यूं साधका !।८५॥ ११४ आसीस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003057
Book TitleAasis
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1988
Total Pages372
LanguageMaravadi, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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