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________________ ध्याता ध्येय रु ध्यान, एक बणे जद स्थिर पण । पाचूं-पवन समान, मिलै 'शक्ति-शिव' साधकां !।६३॥ नरम नीति स्यूं नेम, नहीं निभला निर्मला। अनुशासन री टेम, शक्ति बरतज्यो साधकां!।६४।। निर्णय जो निष्कर्ष, निपुण-बुद्धि र न्याय रो। स्वीकृत करो सहर्ष, सरल चित्त स्यूं साधकां!।६५।। निरतिचार निर्द्वद, संयम समकित साधना। करो छन्द नै बंद, समता-साधक साधकां!१६६॥ पुण्य प्रमाण प्रवीण, प्रभुता प्रियता पूज्यता। करो न पूंजी क्षीण, सम्बोधी-धर साधकां!।६७॥ पालै छप-छप पाप, पछताणो पड़सी पर्छ। छद्मस्थी री छाप, लाग्या सरसी साधकां!६८॥ परम प्रभावी प्रेय, परमेष्ठी पंचांगुली। एक दुष्ट है श्रेय, स्पष्ट-निष्ठ रहो साधकां!॥६६॥ फिरतल री फरियाद, कुण स्वीकार, कुण सुण । स्थिरता रोकुछ स्वाद, स्थिर बण चाखो साधकां!७०।। फटकारे ही फाव', बोलै पाण, बण बे-रुखो। द्यो आयां नै आव, आदर-सादर साधकां!।७१॥ फैको मती फहीड़, बको मती बेफेम थे। भाग्योडां री भीड़, स्हामो साहसी साधकां!।७२।। बात-बात मै बर, बांधो मत बैठा-सुतां। ओ जबान रो जैर, सागी शंखियो साधकां !।७३।। १. मुफ्त-बेकार। साधक-शतक ११३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003057
Book TitleAasis
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1988
Total Pages372
LanguageMaravadi, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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