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________________ उदय भाव उपभोग, चोखा लागै चित्त नै । क्षायक उपशम योग, 'चम्पक' अणसेंहदा श्रमण !॥१०॥ उतर जणां उतार, धोखो देवणिया घणां । ब्रेक बण्यां बेकार, 'चम्पक' कुण साहरो श्रमण !।११।। उपकारी स्यूं ऊर्ण, होणो के आसान है ? कर पालड़ो पूर्ण, 'चम्पक' धर्म सुणा श्रमण !।१२।। उपदेष्टा उपदेश, देव सिंह ज्यूं दहाड़ता। स्याल सरीखा शेष, 'चम्पक' निवडैला श्रमण !।१३।। उणिहारै उन्मेष, उपकारी रे नहिं उठे। निकलण मत दै नेस, 'चम्पक' समझावै श्रमण !।१४॥ उल्लू नै अफशोष, चम्पक' दिन मैं नहिं दिखै । दोषी नै निज दोष, नहिं दीस शीसै श्रमण !॥१५॥ उलझन मै उपहास, और उभारे उग्रता। 'चम्पक' ल्या ठंडास, मीठा शब्दां स्यूं श्रमण !।१६॥ उलटो करै उजाड़, लल्लै-चप्पै जो लगे । खिणे हाथ स्यूं खाड, 'चम्पक' खुद खातर श्रमण !॥१७॥ ऊफणते ऊफाण, सिरकाजे मत सिलगती। पाणी पडतां पाण, 'चम्पक' शान्त स्वतः श्रमण !।१८।। एरंड रो इकबाल', देतां लचको धह पड़े। 'चम्पक' झोलो, जाल, साल, सुपारी सहै श्रमण !॥१६॥ एकाचार विचार, 'चम्पक' एक प्ररूपणा । संगठन रो सार, स्वामीजी सोध्यो श्रमण !॥२०॥ १. पेड़। ६० आसीस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003057
Book TitleAasis
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1988
Total Pages372
LanguageMaravadi, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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