________________
काढ़-काढ़ कचरो थक्यो, चम्पा ! कितोइ बुहार । (अ) भुंडा दोय भतूलिया, अहंकार-ममकार ।।७।।
किस्यै भरोसै तूं कर, चम्पा ! ओ अहंकार । कठे बीरबल सिकंदर, हिटलर खोज निकार ॥८॥
काल अनन्तो बीतग्यो, रड़बडतां रंगरोल। मिनख-जमारो ओ मिल्यो, चम्पा ! आंख्यां खोल ॥१॥
कम रासन रस्तो घणो, जगड़ वाल जंजाल । जानक थोड़ी जिन्दगी, चम्पा ! झटपट चाल ॥२॥
कर आत्मा रो काम तूं, झूठ जग मत झूल । म्हारापण नै दै मिटा, चम्पा ! भेद न भूल ॥३॥
कसर लारली काढ लै, मिल्यो रत्नत्रय मेल । चम्पा ! पगमत चांतरी, चिल्लां चालै रेल ॥४॥
करी हिफाजत देह री, गयो चेतना भूल । चम्पा ! अब भी चेतज्या, हाल-हाल अनुकूल ॥८॥
कह्यो मान चम्पा ! करै, क्यूं तूं ताव खिंचाव । जीव स्वभाविक शुद्ध है, ओ विभाव भटकाव ॥८६॥
कमर बांध कर आज के, दिन मै करी प्रवेश । माथै मरणो मड़ रह्यो, चम्पा ! अगत अणेश ॥८७॥
किती किताबां पढ़ भले, करलै डिग- पास । मुक्ति क्रिया अभ्यास बिन, (के) चम्पा! सोहरे सास ।।८८॥
क्रिया-बाट नै कर उंची, चम्पा ! दिवलो चास। आछो मण भर ज्ञान स्यू, रत्ती भर अभ्यास ॥८६॥
क्यूं उलझ्यो शब्दां मदां, अन्तर ज्ञान्यां पास। प्रश्न पडूत्तर कर परख, चम्पा! बुझसी प्यास ॥१०॥
८४ आसीस
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org