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क्रोध कलुषता ल्या मती, चम्पा ! मन न मसोस । कर्या आपरा भुगतणां, दूजां नै के दोष ॥ ६१ ॥
करम कमेड़ी रा कर्या, चम्पा ! हर सी हंस | होड हवेल्यां री करें, नहीं छान पर फूस ॥ ६२ ॥
केवल मन ही बंध रो, कारण मन ही मोक्ष | चम्पा ! मन जीत्यां विजय, है प्रत्यक्ष परोक्ष ||३||
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परमारथ-पावड्यां ८५
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