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केद प्राण क्यूं पीजरै ? मिल्यो न अन्तर भेद। छेद-भेद समझ्यां बिना, चम्पा ! खेद ही खेद ॥५५॥
काम इसो कर, रात नै, आय निचिन्ती नींद। छोड़ परायी पींदणी, चम्पा ! अपणी पीद ॥५६॥
करड़ा बन्धन दो कस्या, चम्पा ! मन मोह अंध । एक सहज स्वच्छन्दता, दूजो है प्रतिबंध ॥५७।।
काम कठिन के सरल के? सुख-दुख एक समान । चोखी-ओखी चीज तो, चम्पा ! मन रो मान ॥५॥
काया माया कारमी, जो जाणे सो जाण । सत्य सरल सीधो सुगम, चम्पा ! प्रकृति पिछाण ॥५६॥
कुण जाणे चम्पा! कणां, कसणो पड़े पिलाण । काल कौतुकी की कला, कहो कुण सक्यो पिछाण ।।६०॥
काठो राखी कालजो, चम्पा! कहणो मान । आर्त-ध्यान मत आदरी, ध्यायी धर्म-ध्यान ॥६१॥
कारण पुनरागमन रो, सूक्ष्म शरीर सुजाण । चम्पा ! छोटोड़ो छुट, (तो) निश्चय निर्वाण ॥६२।।
कालो काजल पाड़ मत, दीपक ! ज्योति स्वरूप । सर्व शक्तिमय क्यूं पड्यो, चम्पा ! बण विद्रूप ॥६३।।
किस्यै जलम रा के पतो, संच्योड़ा पुन-पाप । किस्यै जलम मै ऊघड़े, चम्पा ! रह चुपचाप ॥६४॥
कान, आंख, मुंह, नाक नै, लै चम्पा ! ढक ढूंम । साध खेचरी सुरसरी, लडालूम बन झूम ॥६५।।
किण नै तूं अपणो कहै, चम्पा ! क्यूं ललचाय ।
जीव अकेलो जलमियो, अन्त अकेलो जाय ॥६६॥ ८२ आसीस
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