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कर मत भौतिक कामना, कृत-करणी मत बेच । पुद्गल सुख है पांवला, चम्पा ! लड़ा न पेच ॥ ४४ ॥
के देखे चम्पा ! खड्यो, खिणं गधेड़ा खाज । तूं करसी तो मैं करूं, बणग्यो समज' समाज ॥४५॥
के होग्यो चम्पा ! इयां, मूरत सो मुंहताज ? समृद्धि सम्पन्न क्यूं, बण्यो भिखारी आज ? ||४६ ||
कदको कादै मै कल्यो, पड्यो' र चम्पा ! चेत । अब फिर बोइ मती, गांव-गोरव खेत ॥४७॥
कुत्सित- बुद्धि कु-ज्ञान कद, मिटसी रे मन मीत । सुण चम्पा ! सत्संग है, परमारथ री प्रीत ॥ ४८ ॥
करुणा कर सद्गुरु दियो, चम्पा ! समकित पोत । कर चरित्राराधना, मिलै जोत मै जोत ॥४६॥
कर मत देरी, कस कमर, उठ न झांक इत-उत्त । भक्ति समर्पण मैं भिजो, चम्पा धोलै चित्त ॥५०॥
कर्या आपरा कर्म ही, चम्पा ! सूरज चांद नै
कोमल मन करुणा भर्यो, पावन हुवै प्रसस्त । चम्पा ! क्रूर कठोर मन, अस्त व्यस्त अस्वस्थ ।। ५२ ।।
है सुख दुख रा हेतु । ग्रसले राहू-केतु ॥ ५१ ॥
कठै ज्ञान ज्ञान्या बिना, आंख बिना अखियार्थ । चीन्ह ज्ञान के च्यानणे, चम्पा ! आत्म पदार्थ ।। ५३ ।।
करणी चम्पा ! नहिं करी, वक्त कर्यो बरबाद । भीतर लै नै भूलग्यो, रह्यो बारलो याद ।।५४।।
१. पशुओं का समूह ।
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परमारथ- पावड्यां
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