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________________ ८० आसीस कुण आत्मा परमातमा, विषय बड़ो बारीक । सुलझ्यो गुरु सुलझा सकै, चम्पा ! ठीमर ठीक ॥ ३२ ॥ करामात चम्पा ! सिखी, घणी जमाई धाक । भेद-ज्ञान पायां छुटे, जलम-मरण री छाक ।। ३३ ।। अर्क । के ठा किस शुभोदये, चम्पा ! ऊग्यो aण निशल्य निर्मल असल, अब के तर्क-वितर्क ॥ ३४ ॥ कुगुरु-सुगुरु धर्माधरम, चम्पा ! समझ्यो फर्क । अबकै समकित चरण रो, मिल्यो सहज सम्पर्क ॥ ३५ ॥ किती वार निश्चय कर्यो, अब मत अवसर ताक । चम्पा ! आद अनाद रो, तीन पात रो ढाक ||३६|| को मान चम्पा ! न रुक, स्हास राख मत थाक । लम्बो गेलो काटणो, अठी-बठी मत ताक ॥ ३७ ॥ कुशल- खेम इण डील रा, लुल लुल पूछँ लोक । चम्पा ! गुण चारित्र रा, जगा विवेक, विलोक ॥ ३८ ॥ करणी किरियाराधना (तो) ले आग्या आलोक । आज्ञा ही आगम - अगम, चम्पा ! जीवन झोंक ॥ ३६ ॥ क्रोधी कजियो कर करें, नर जीवन नै नरक । स्वर्ग शान्ति में है सदा, चम्पा ! बोलै चरक ||४०|| करणी रा सब लाड है, कृत- फल चम्पा ! चाख । रेख-मेख आ कर्म री, नींमा फलं न दाख ॥। ४१॥ कद को बह्यो विभाव में, हाय- बोय रो रोग । अब अबन्ध परिणाम स्यूं, चम्पा ! समचित भोग ॥ ४२ ॥ के ठा कुणसे जलम रा, शेष भोगणा भोग । चम्पा ! चुकै उधार क्यूं, बिलखो देख बिजोग || ४३ || Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003057
Book TitleAasis
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1988
Total Pages372
LanguageMaravadi, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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