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कुटिल चित्त चंचल-चपल, पड़े पाप रे पंक । चम्पा ! फूलां रै तलै, शूलां रो आतंक ॥२०॥
कामी, कपटी, कलुष कल, रुलत मन नै रोक । चम्पा चंचलता मिट्यां, सरसी सगला थोक ॥२१॥
औरां रो ऐश्वर्य सुख, झांक रांक मत रौंक । करणी करतां क्यूं तन, आवै चम्पा! छींक ॥२२॥
कर्मभोग समभाव स्यूं, आली मत कर आंख । चम्पा ! बांध्या चीकणा, रोवै क्यूं बण रांक ॥२३॥
काम किस्यो छोटो बड़ो, चम्पा ! चढ़ग्यो चोक । पोजीसन रो रोग क्यू, घर मैं घाल्यो लोक ॥२४॥
काम ओ कर्यो बो कर्यो, बदलो मांग वराक। चम्पा! ढोवै भार क्यूं, सीधो काढ़ सुराक ॥२५॥
कुण के केव के करै, कोण ठीक-बे-ठीक । चम्पा! चिता और की, करण बुद्धि बारीक ॥२६॥
क्यूं कांदै रा छूतरा, छोलण बणग्यो छक । आड-डोड आग्रह हटा, चम्पा ! जगा विवेक ॥२७॥
कोमल मन स्यूं कर क्षमा, निपट माननै न्हांख । भूलां ओरां री भुला, खुदरी भूलां झांक ॥२८॥
कर करुणां, वात्सल्यता, खमा जा'र नजदीक । चम्पा ! ओरां रे झुकण, नै तूं मती अडीक ॥२६॥
क्रोध कर्यो गुरुमरडवण्या, चंदकौशिक विष फूंक । चम्पा ! पायो शान्तिधर, केवल कूरगडूक ॥३०॥
क्रोध कलह कारण कह्यो, शान्ति शान्ति सिंदूक । कर विशाल चम्पा ! हियो, मत बण कूप-मंडूक ॥३१॥
परमारथ-पावड्यां ७६
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