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केहबत इण में है किसी ? बात बड़ी बारीक। चम्पा! धर्म-ध्यान मैं, राख हृदय रमणीक ।।८।।
कूण जाणे कद आउखो-बन्ध ज्यावै बन्दाक । अप्रमत्त चम्पा ! रही, छोड़ छद्म की छाक ॥६॥
कुमति-कला कुंची कली आस्था राख अनंक । शंका-कंखा सांप रा, चम्पा ! समझी डंक ॥१०॥
किसो जीवणो सो बरस, बैठ्यो कियां निसंक। कर करणी चूकै अणी, चम्पा ! पाप प्रयंक ।।१।।
कर्म कर्योडा भोगणा, उदय पाडदी हाक । चम्पा! क्यूं चल-विचल-मन, मचकोड़े मुंह-नाक ॥१२॥
कुशल ! जरा कौशल दिखा, झुककर चम्पा! झांक। घट-कूऔ कचरो घणो'क, पाणी ? आकां आंक ॥१३॥
काछ-बाच रो साच जो, चम्पा ! कहै दडूक । क्षणिक तनिक सुखहित मती, वधा अनन्तो दुःख ॥१४॥
कर गयी को सोच के ? चम्पा ! अब मत चूक । तन की पोटी पूरग्री, (पण) मन की मिटी न भूख ॥१५॥
कुम्हलावै चम्पा ! तुं क्यूं ! माथे मांड़ी बूक । मणांबन्द मिसरी गिटी, फीको फिर भी थूक ॥१६॥
कोरी मींड्यां मांड दी, एक न मांड्यो अंक । धर्म-अंक लारै धरै, (तो) चम्पा! लागै लंक ॥१७॥
के है बन्धन ? क्यूं बंधै ? टूट कियां विपाक ? चम्पा! थोड़ो सोच क्यूं, देवे उख परिपाक ॥१८॥
काम-भोग दुख रोग है, तांता तोड़ तड़ाक । सुख रो रुख संतोष है, चम्पा ! चेत चटाक ।।१६।।
७८ आसीस
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