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काट च्यार घातिक करम, प्रतिहार्याष्ट प्रतीक । चम्पा ! अर्हत्-पद प्रणम, तीर्थंकर तहतीक' ॥ १॥
दोहा
करें सिद्ध श्रेयस सजग, नमूं सन्त निर्भीक । चम्पा ! चिन्तव चेतना, लम्बी खांची लींक ॥२॥
कृपा हुवै गुरुदेव की, जावै भव- स्थिति पाक । सेवा सन्तारी सझै, 'चम्पक' तिरै चटाक ॥३॥
कठिन मार्ग है मोक्ष रो, चम्पा ! अलख अलीक' । सन्ता बिना अनन्त को, अन्त नहीं नजदीक ॥४॥
कोमल परिषद् प्रशंसा, मीठो जहर मनाक * । चम्पा ! स्तुति पथ फिसलणो, पड़े प्रमत्त तड़ाक ॥५॥
कृष्ण, नील, कापोत मैं, राग- रोष ने रोक । धर्मं- शुक्ल धाऱ्यां ढ़है, चम्पा ! च्यारूं चोक ॥ ६ ॥
कह री कह सामने, नहि तर चुप ही ठीक । वीतराग विधि बांधग्या, चम्पा ! लोप न लीक ॥७॥
१. सत्य ।
२. झट ।
३. अदृश्य । ४. थोड़ा-सा ।
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परमारथ-पावड्यां ७७
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