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टेच्चर टाबर टिंगर स्यू, टणकां स्यूं टकरांव । 'चम्पक' शोभै नहिं चतुर, गुणिजन कहै गुलाब !॥२०॥
ठगा'र ठोकर खा'र है, ठीमर ठाकर-साब । 'चम्पक' नहिं चेतै, गधो, गुलक', गिवार, गुलाब !।२१।।
डबकै डिगली चूक डफ, डाला डोले डाब। 'चम्पक' जग जूता जड़े, गलियां माहिं गुलाब !।२२।।
ढब्बूशाही ढींगलो, ढबस्यूं ढंगस्यूं ढ़ाब । 'चम्पक' बुचकाऱ्या बहै, गूगो, बलद, गुलाब !।२३।।
तण्यां-धण्यां ही तर्क कर, खुद रह खुली किताब । 'चम्पक' चर्चा गेल स्यू, गोला करै गुलाब !॥२४॥
थंभा ! थां सरिखा थकै ? (तो) छत थांभण कुण थाब'। 'चम्पक' शासण आपणो, सांस न गेर गुलाब !।२५॥
दब्बू दुम्मी नै दकी, देव हरकोइ दाब । 'चम्पक' फुक्कारै फणी, (तो) रोब रबाब गुलाब !॥२६॥
धण्यां कन्है धाडा पड़े, धींगामस्ती धाव' । 'चम्पक' जो बोले बिरै, पड़े गदीड़ गुलाब !॥२७॥
मर राखै नीची निजर, नणां न्हांख नकाब। बायां स्यूं बोले जणां, 'चम्पक' चेत गुलाब !!२८।। पड़े नहीं पड़पंच मै, पजै न जाल-जराब। 'चम्पक' पग नहिं चातरै, गहर गंभीर गुलाब !।२६॥
१. मदवो ऊंट। २. समर्थ । ३. खुल्लै आम। ४. पडदो। ५. पगां रा मोजा ।
गुलाब गुणचालीसी ७१
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