________________
मन की शक्ति
७६
सापेक्ष है । आठ सिद्धियों में एक सिद्धि है -अणिमा । इसके अभ्यास से शरीर हल्का हो जाता । इतना हल्का कि वह चाहे जहां टिक सकता है, ठहर सकता है । यह योग की एक प्रक्रिया है किन्तु यह भी कोई आध्यात्मिक प्रक्रिया नहीं है । जितनी सिद्धियां हैं, वे सब अध्यात्म से नीचे रह जाती हैं । ये सिद्धियां मानसिक शक्ति के जागरण और मांसपेशियों के समुचित व्यायाम -के द्वारा उपलब्ध होती हैं ।
मानसिक शक्ति : अभ्यास की पद्धति
मन की शक्ति अभ्यास के द्वारा जागृत होती है । एक है अभ्यास और एक है अभ्यास की पद्धति । अभ्यास की पद्धति प्राप्त हो जाए और बार-बार अभ्यास किया जाए तो उस दिशा में विकास हो जाता है । अभ्यास की • हजारों पद्धतियां हैं, जिनसे मन को शिक्षित किया जा सकता है । मन के द्वारा . हजारों-हजारों काम किए जा सकते हैं । एक ही व्यक्ति सब पद्धतियां साधे, यह संभव नहीं है । एक दिशा में अभ्यास किया जा सकता है । एक व्यक्ति ने सोचा कि मैं एक अभ्यास पर बिजली को जलाने और बुझाने की शक्ति प्राप्त कर लूंगा । एक दिशा में अभ्यास प्रारंभ किया । संकल्प बढ़ा । वह दूर बैठा ही बिजली जलाने-बुझाने में सफल हो गया । इसको हम कोई आध्यात्मिक मूल्य नहीं दे सकते । यह केवल मानसिक शक्ति का एक प्रयोग मात्र है । अमुक धारा में मन का प्रवाह ले जाया गया और वह सध गया । एक व्यक्ति ने प्रयोग किया मैं मन की शक्ति के द्वारा किसी को वरदान और किसी को शाप दूंगा, किसी पर अनुग्रह करूंगा और किसी पर निग्रह करूंगा । उसी धारा में मन को प्रवाहित किया और उसे वह शक्ति प्राप्त हो गयी । उसमें वरदान देने की शक्ति भी आ गयी और शाप देने की शक्ति भी मानसिक शक्ति का प्रयोग
आ गयी ।
एक धनुर्धर था । वह अपने समय का विख्यात धनुर्धर था । उसे अपनी धनुर्विद्या पर गर्व था । एक व्यक्ति के समक्ष वह अपनी प्रशंसा कर रहा था । उस व्यक्ति ने कहा – “भाई ! तुम प्रसिद्ध धनुर्धर हो । परन्तु मेरे गुरु की तुलना में तुम नहीं आ सकते । वे ऐसे धनुर्धर हैं जिनकी तुलना कठिन है ।" वह गुरु को देखने गया । धनुविद्या का चमत्कार दिखाने की प्रार्थना की। गुरु उसे एक पहाड़ की चोटी पर ले गया। गुरु ने आकाश को एकटक - देखना प्रारंभ किया । आकाश की ऊंचाई पर पक्षियों का एक झुण्ड उड़ रहा - था । वह उसकी दृष्टि की रेंज में आ गया । ज्योंही उसकी दृष्टि पक्षियों पर पड़ी, सारे पक्षी जमीन पर आ गिरे । उसने न कोई प्रत्यंचा तानी और न कोई तीर साधा । केवल अनिमेष प्रेक्षा से वह संघ गया । यह थी बिना धनुष और बाण की धनुर्विद्या । अनिमेष प्रेक्षा से यह सब कुछ हो सकता है । उड़ते
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org