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________________ मन की शक्ति ७७ जिसका मनोबल नहीं हारता । जो दो-चार बार जीत जाता है पर कभी मनोबल टूट जाता तो अंतिम रूप में वह विजयी नहीं होता, पराजित हो जाता है । मन का बल बहुत बड़ा बल होता है और वह तभी टिकता है जब मन एकाग्न हो, स्थिर हो, निर्मल हो। प्रश्न है पटुता का - हम मन को पटु बनाएं, मन को कुशल बनाएं, मन को प्रशिक्षित करें। उसे इस प्रकार प्रशिक्षित करें कि उसकी क्षमता विकसित हो जाए और ध्यान की स्थिति तक पहुंचने की योग्यता संपादित हो जाए । अवधान योग्यता का संपादन है । मन को पटु बनाए बिना, मन की पटुता को संपादित या अजित किए बिना हम ध्यान की भूमिका तक नहीं पहुंच सकते। इसलिए मन को पटु बनाना, कुशल बनाना बहुत ही जरूरी है । मन को पटु बनाने के लिए अनेक अभ्यास कराए जाते हैं। उस अभ्यास के चार चरण हैं और प्रत्येक चरण का एक-एक युगल है। __पहला क्रम-युगल है-अल्पग्राही, बहुग्राही । सबसे पहले व्यक्ति ऐसा अभ्यास करे कि वह थोड़े को पकड़ सके, थोड़े समय तक पकड़ सके। यह अल्पग्राही है । फिर वह बहुत को पकड़ने का, लम्बे काल तक पकड़े रहने का अभ्यास करे । यह बहुग्राही है । एकविध : बहुविध दूसरा क्रम-युगल है-एकविधग्राही, बहुविधग्राही । पहले एकविध वस्तुओं को देखने का अभ्यास करना चाहिए । उनमें जो सूक्ष्म अन्तर होता है, उसका विवेक करना चाहिए। फिर एक साथ अनेक वस्तुओं को देखना प्रारंभ करना चाहिए। धीरे-धीरे उसमें पटुता आती है और साधक एक ही दृष्टिपात में अनेकविध वस्तुएं देखता ही नहीं, उन्हें ग्रहण भी कर लेता है । अवधान में 'सप्तसंधान' का प्रयोग करने वाले साधक एक साथ, एक क्षण में सात वृत्तान्तों को स्मृति में रख सकते हैं। यह बहुविधग्राही का उदाहरण है। इसमें एक-एक इन्द्रिय की पटुता को बढ़ाया जाता है। क्षिप्रग्राही : चिरगाही तीसरा क्रम-युगल है-क्षिप्रग्राही, चिरग्राही। मन को ऐसा अभ्यास दिया जाता है कि वह बाह्य पदार्थ को तत्काल ग्रहण कर लेता है । एक दृष्टि डाली और तत्काल सब कुछ ग्रहण कर लिया। यह है-क्षिप्रग्राही विधि । चिरग्राही वह क्षमता है, जो चिरकाल तक उस गृहीत वृत्तान्त को स्मृति-पटल पर स्थायी रख सकती है। अनिःसतग्राही : निःसृतग्राही चौथा क्रम-युगल है-अनिःसृतग्राही और निःसृतग्राही । अनिःसृतग्राही For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003056
Book TitleChitt aur Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size16 MB
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