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________________ ७६ चित्त और मन प्रशिक्षण और जुड़ जाए तो कौशल में बहुत अभिवृद्धि हो सकती है । उनकी योग्यता और चुस्ती बढ़ जाती है । उनकी सहन शक्ति बढ़ जाती है । शरीर का बल कितना ही हो, यदि मन की एकाग्रता नहीं होती है तो सहन करने की शक्ति भी नहीं होती । बड़े से बड़ा सैनिक शारीरिक शक्ति का प्रदर्शन कर सकता है पर यदि उसका मन दुर्बल होता है तो वह बात-बात में आवेश से भर जाता है, मन चिन्ता से आक्रान्त हो जाता है | दुर्बल कौन शरीर की शक्ति का होना एक बात है और मन की शक्ति का होना दूसरी बात है । ऐसे निर्बल लोग होते हैं जो हजारों व्यक्तियों का सामना कर लेते हैं, पर उनका मन इतना होता है कि वे पग-पग पर घुटने टेक देते हैं। जिसने दूसरों को जीता और अपने आपको नहीं जीता, वह दुर्बल माना जाता है। हजारों पर नियंत्रण पाने वाला यदि इन्द्रियों पर, मन पर इच्छाओं और कामनाओं पर नियंत्रण नहीं पाता, वह शक्तिशाली नहीं माना जा सकता, वह वीर योद्धा नहीं हो सकता। वीर वह होता है जो अपने आप पर विजय पा सकता है। भारतीय साहित्य में एक धार्मिक व्यक्ति को वीर योद्धा माना जाता है । वह अपने आपसे लड़ता है । इसमें भी पूरी शक्ति चाहिए। जितनी शक्ति एक सैनिक को युद्धस्थल में चाहिए उससे अधिक शक्ति एक आध्यात्मिक योद्धा में चाहिए । जो काम एक योद्धा रण-प्रांगण में नहीं कर सकता, वह काम अध्यात्म की साधना करने वाला वीर योद्धा कर सकता है । अपनी इन्द्रियों को, मन और इच्छाओं को जीतना कम लड़ाई नहीं है, बहुत बड़ी लड़ाई है। जीवन की इस लड़ाई में वही सफल हो सकता है, जो ध्यान और एकाग्रता का अभ्यास करता है ।, मन की शक्ति : विकल्प मन में अनगिन विकल्प उठते हैं। उनसे मन की शक्ति क्षीण होती है । जब मन विकल्प-शून्य होता है । तब मन की शक्ति क्षीण होने से बच जाती है । एक निशानेबाज अपने निशाने को एकाग्रता से साध लेता है पर वह अपनी इच्छाओं पर प्रहार नहीं कर सकता । वह विफल हो जाता है । कोरी एकाग्रता ही पर्याप्त नहीं है, मन की निर्मलता भी चाहिए । मन की निर्मलता से शक्ति बढ़ती है। इससे मन टूटता नहीं, वह होने वाली हर घटना और परिस्थिति को सह लेता है । परिस्थिति को सहना छोटी बात नहीं है । हर आदमी परिस्थिति को से बड़ा सैनिक भी प्रतिकूल परिस्थिति में घुटने मैदान में कभी हार होती है और कभी जीत । जिसका मनोबल नहीं टूटता, वह हारकर भी फिर जीत जाता है। अंतिम जीत उसी व्यक्ति की होती है नहीं सह सकता । बड़े टेक देता है । युद्ध के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003056
Book TitleChitt aur Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size16 MB
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