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________________ मन की शक्ति ७५ होता। यह अनुशासन कहां से विकसित हुआ ? काम करने की प्रखरता कहां से आई ? यह सब एकाग्रता और ध्यान से प्राप्त हुआ है। जिस राष्ट्र के नागरिक ध्यान नहीं करते, वे कभी शक्ति-सम्पन्न नहीं हो सकते । आज का प्रत्येक वैज्ञानिक, जो गहराइयों में डुबकियां लगाता है, वह कम ध्यानी नहीं है। बिना ध्यान या एकाग्रता के नए तथ्य उद्घाटित नहीं होते। चेतना का एक ही प्रवाह में प्रवाहित हो जाना एकाग्रता है । जब कोई भी व्यक्ति गहरी समस्या में उलझता है तब वह ध्यान की स्थिति में चला जाता है । गहरी एकाग्रता सधे बिना सूक्ष्म सत्य का ज्ञान नहीं हो सकता। शक्ति का विकास और एकाग्रता का विकास ध्यान के द्वारा ही हो सकता तीन बाधाएं हमारे पास दो शक्तियां हैं-एक है ज्ञान की शक्ति और दूसरी है क्रिया की शक्ति । एक है ज्ञानात्मक शक्ति और दूसरी है क्रियात्मक शक्ति । इन दोनों शक्तियों का विकास ध्यान के द्वारा हो सकता है । इन शक्तियों के विकास में तीन बधाएं हैं-- शरीर की बीमारी, मन की बीमारी और प्रभाव की बीमारी । जब शरीर बीमार होता है तब ज्ञानात्मक और क्रियात्मक शक्तियां सो जाती हैं, ठंडी पड़ जाती है। इससे भी खतरनाक है मन की बीमारी । जब मन आहत होता है, उसे कोइ आघात लगता है तब पैर वहीं रुक जाते हैं । एक आदमी बहुत अच्छा काम करता है । कोई उसे कह देता है-- गधे हो, बेवकूफ हो। यह भी कोई काम करने का तरीका है ? इतना सुनते ही उसके मन में आग सुलग जाती है, काम करने की भावना टूट जाती है, शक्ति क्षीण हो जाती है। शरीर और मन का सन्तुलित प्रशिक्षण शक्ति के लिए जरूरी है कि शरीर और मन साथ में जुड़े रहें । शरीर एक काम करता है, मन दूसरा काम करता है तो शक्तियां क्षीण होती हैं। शक्ति का सबसे बड़ा रहस्य है-शरीर और मन-दोनों का एक साथ रहना। हमारा अभ्यास ही नहीं है कि मन शरीर का साथ दे या शरीर मन का साथ दे । शरीर अलग चलता है, मन अलग चलता है। पर सैनिकों को इसका अभ्यास कराया जाता ह कि शरीर और मन साथ-साथ रहें । एक प्रकार से ध्यान की पहली अवस्था उन्हें सीखनी ही पड़ती है । यदि ऐसा नहीं तो उनका तालबद्ध चलने का अभ्यास चल नहीं सकता। सैनिकों के चलने का क्रम, खड़े रहने का क्रम, काम करने की चुस्ती-ये सभी सामान्य नागरिक से भिन्न होती हैं । सैनिकों के शारीरिक प्रशिक्षण के साथ यदि अन्तर्मन का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003056
Book TitleChitt aur Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size16 MB
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