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________________ मन का शरीर पर प्रभाव ७१ से पैदा होने वाली बीमारियां हैं। ध्यान के द्वारा यह हिंसा का मल, हिंसा का दबाव कम होता है, प्रतिक्रिया-विरति होती है, मैत्री का विकास होता है तब उसके टिके रहने का आधार ही समाप्त हो जाता है। तर्कशास्त्र का एक नियम है-कारणा-भावे कार्याभाव: कारण का अभाव होने पर कार्य का भी अभाव हो जाता है । दीर्घश्वास का आलम्बन - शारीरिक स्तर पर समूचे कषाय को कम करने के लिए तथा अहं को नष्ट करने के लिए श्वास की मन्दता का प्रयोग करना अपेक्षित है। हमारी साधना में मन्द श्वास के प्रयोग का बड़ा महत्त्व है। हम श्वास को जितना मन्द करेंगे उतनी ही हमारी साधना सफल होगी, विकसित होगी। साधना की दृष्टि से चिन्तन करने पर पता चल जाता है-जब कोई आवेश उतरता है तो वह सबसे पहले श्वास पर उतरता है। हम सामान्यतः एक मिनट में १५-१८ श्वास लेते हैं। क्रोध आते ही श्वास की मात्रा बढ़ जायेगी२०-२५ हो जायेगी। वासना आते ही श्वास की मात्रा और बढ़ जाएगी। आवेग या आवेश आते ही श्वास तेज चलने लग जाएगा। यदि हम श्वास की मात्रा को पहले ही घटा दें तो कषाय या आवेश को उतरने का मौका ही नहीं मिलेगा । श्वास की मन्दता के लिए अभ्यास करना होगा। अभ्यास के पहले दिन व्यक्ति ऐसा करे कि वह पन्द्रह सेकण्ड में एक श्वास ले, एक मिनट में चार श्वास ले-आठ सेकण्ड में श्वास और आठ सेकण्ड में निःश्वास । वह पांच-दस मिनट तक अभ्यास करे । दस-बीस दिन ऐसा करे, फिर आगे बढ़े। धीरे-धीरे इस स्थिति में आ जाए कि एक मिनट में एक श्वास । इस स्थिति तक पहुंचने में एक वर्ष भी लग सकता है। दो वर्ष भी लग सकते हैं और अधिक समय भी लग सकता है । अभ्यास की निरन्तरता होने पर यह अभ्यास फल देने लगता है। एक बात ध्यान में रहे-बल-प्रयोग के द्वारा सिद्धि प्राप्त करने का प्रयत्न न हो। स्वाभाविक रूप से जो घटित होता है, उसे घटित होने दें। एक मिनट में एक श्वास-निश्वास की स्थिति यदि दिन में एक-दो घंटे तक हो जाए तो हम इन खतरों से बाहर हो जाएंगे। तब न क्रोध का प्रश्न रहेगा और न आवेश का प्रश्न ही उभरेगा। अहंकार का प्रश्न भी समाप्त हो जाएगा। इसी स्थिति में ही मनोभाव से उत्पन्न होने वाली शरीर की विकृति का समाधान सहज संभव हो पाएगा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003056
Book TitleChitt aur Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size16 MB
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