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मन का शरीर पर प्रभाव
शरीर में अपने आप तनाव आ जाता है। उससे रक्त-क्रिया में परिवर्तन हो जाता है तथा क्षीणता प्राप्त होती है। क्रोध
यह तो प्रमाणसिद्ध बात है कि क्रोधी मनुष्य के मन में हमेशा तनाव बना रहता है। वह किसी भी कार्य को मुक्तभाव से नहीं कर पाता । वैज्ञानिकों ने क्रोधी मनुष्य के रक्त को निकालकर उसे चूहों के शरीर में प्रविष्ट करवाया तो उनमें विचित्र हरकत पैदा हो गई। यहां तक कि कई चूहों की तो उससे मृत्यु भी हो गई क्योंकि क्रोध मे रक्त में विषाणु फैल जाते हैं । ऐसा भी देखा गया है-माता यदि क्रोध के समय बच्चे को स्तनपान करवाए तो उससे कभी-कभी बच्चे की मृत्यु तक भी हो जाती है।
हमने राजस्थान में एक घटना सुनी थी। एक गांव में बहुत शांत प्रकृति का व्यक्ति था। साधारणतया उसे कभी क्रोध नहीं आता था पर एक दिन अध्यापक ने उसके लड़के को पीट दिया। उसे जब इस बात का पता चला तो इतना गुस्सा आया कि उस आवेश में वह उसी समय स्कूल की तरफ चल पड़ा। वह थोड़ी ही दूर गया था कि उसे हृदय का दौरा पड़ गया
और थोड़े दिनों के बाद उसकी मृत्यु हो गई। कपट
दूसरों को ठगना बहुत प्रिय होता है। उस मनुष्य को होशियार माना जाता है जो चतुराई से दूसरों को ठग सके। पर इससे मानसिक तनाव बहुत बढ़ जाता है। हम किसी को ठगते हैं, इसका अर्थ होता है कि वस्तु के प्रति हमारे मन में तीव्र आसक्ति है। आसक्ति जब घनीभूत हो जाती है तब मन में तनाव पैदा होता है। प्रेम का ही उदाहरण लें। प्रेमी व्यक्ति की जिसमें आसक्ति हो जाती है, उसे हर क्षण वही-वही दिखता है, उसकी भूख और नींद भी हराम हो जाती है। इससे अनेक रोग पैदा हो जाते हैं । अधिक हैं मानसिक रोग
डॉक्टरों ने अनुसंधान करके पता लगाया-सो में से साठ रोग केवल मानसिक होते हैं । दस-बीस प्रतिशत रोग शारीरिक होते हैं। कुछ रोग कीटाणुओं के कारण भी होते हैं। पर वे भी इसीलिए कि मनुष्य की रोगों से लड़ने की क्षमता क्षीण हो जाती है । हमारे शरीर में लाल अणु जितने कम होते हैं, उतनी ही हमारी प्रतिरोध-शक्ति कम होती चली जाती है । यह सब मानसिक उलझन की देन है। इसलिए बाह्य रोग भी हमारे पर तभी प्रभाव डाल सकते हैं जबकि हमारे मन में उलझन हो । शहरी सभ्यता : मानसिक द्वन्द्व
भौतिक दृष्टि से अमेरिका बहुत समृद्ध देश है पर वहां बीमारियों
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