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चित्त और मन
ग्रन्थि-मेव
एक व्यक्ति ने अपनी पत्नी के प्रति बहुत बुरा व्यवहार किया। पत्नी उस व्यवहार से तिलमिला उठी और एक दिन उसकी मृत्यु हो गयी। उसकी मौत से पति को बड़ा धक्का लगा और वह क्षयरोग से ग्रस्त हो गया। उसे अपने व्यवहार के प्रति इतनी तीव्र आत्मग्लानि हुई कि उसे रोगग्रस्त होना पड़ा। अन्त में उसने अपने डॉक्टर को सब कुछ लिखकर बताया। उसके क्षयरोग का मूल कारण था आत्मग्लानि । डॉक्टर ने उसे योग्य मनश्चिकित्सक के पास भेजा और कुछ ही महीनों में वह स्वस्थ हो गया। न तो कीटाणुओं ने बीमारी पैदा की और न दवाइयों ने बीमारी को मिटाया । बीमारी हई मनोभाव से और स्वस्थता प्राप्त हुई उस ग्रन्थि के खलने से ।
प्रत्येक बीमारी के समय हम अपने पर भी दृष्टि डालें। यह भावचिकित्सा का महत्त्वपूर्ण सूत्र होगा। इससे बड़ी-बड़ी मनोकायिक बीमारियां ठीक होंगी, स्वास्थ्य लाभ होगा।
डॉक्टर कहता है कि सुगर की बीमारी का मूल कारण है इन्स्यूलिन का कम हो जाना। पर जब हम मनोभावों का विश्लेषण करेंगे तो पता चलेगा-तंत्रिका-तंत्र की खराबी के कारण इन्स्यूलिन कम बनता है और सुगर की बीमारी हो जाती है।
इसी प्रकार भय, घृणा, कपट, क्रोध आदि मनोभाव मन के साथ-साथ शरीर को भी प्रभावित करते हैं। भय
इसके कारण मनुष्य में अस्वाभाविक वृत्तियां पैदा होती है । सचमुच भय के परिणाम बड़े कल्पनातीत होते हैं। मनोवैज्ञानिकों ने भी इस पर बहत प्रकाश डाला है । भय के बारे में अनेक अनुसंधान हुए हैं। आयुर्वेदिक तथा होम्योपैथिक पद्धति में भी इस पर बड़ी सूक्ष्मता से विचार किया गया है। उनका कहना है कि भय से शरीर में ऐंठन पैदा होती है। इससे स्नायुओं पर अस्वाभाविक दबाव पड़ता है और वे कार्य करने में अक्षम बन जाते हैं । यह तो हम स्पष्ट देखते हैं कि भय के समय हमारे शरीर की क्या स्थिति होती है । सारे शरीर में एक प्रकार की सिकुड़न-सी पैदा हो जाती है। कभी-कभी तो माकस्मिक भय से हार्ट फेल तक हो जाता है। शास्त्रों में अकाल-मृत्यु के सात कारणों में से भय को भी एक कारण माना गया है। विज्ञान भी इसका समर्थन करता है।
घृणा
घणा की अभिव्यक्ति को साहित्य में नाक-भौंह सिकोड़ना कहकर बताया गया है । इससे स्पष्ट है, जब हमारे मन में घृणा के भाव आते हैं, तब
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