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________________ मन का शरीर पर प्रभाव से शरीर स्वस्थ रह सकता है और किस प्रकार के भोजन से बीमारियां सताती हैं । आज यह अपेक्षा है कि प्रत्येक व्यक्ति को यह जानकारी दी जाए -किस प्रकार के मनोभाव से हम स्वस्थ रह सकते हैं और किस प्रकार के मनोभावों से हम बीमार पड़ते हैं। यह चिकित्सा के क्षेत्र में एक नयी क्रांति हो सकती है। आलोचना का महत्व कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं है, जो अपने मनोभावों का शिकार न बनता हो । जो व्यक्ति अपने मनोभावों का शिकार होता है, वह बीमारियों को निमन्त्रित करता है। बीमारी को मिटाने के लिए डॉक्टर को बुलाने से पहले अपना आत्मलोचन कर लेना चाहिए । जैन आगमों में दस प्रायश्चित्त बतलाए गए हैं । उनमें एक है - आलोचना । इसका अर्थ है-आत्मविश्लेषण करना, आत्मनिरीक्षण करना। डॉक्टर से दवा लेना अनुचित नहीं कहा जा सकता, किन्तु क्या सारी बीमारियां इन दवाइयों से ठीक हो सकती है ? सारी बीमारियां शारीरिक नहीं होती। कुछेक बीमारियां दवा से ठीक होती भी हैं पर जो मनोभावों से उत्पन्न होती हैं, वे इन दवाइयों से नहीं मिटतीं। हम शरीर को देखते हैं, बीमारी को देखते हैं, डॉक्टर को देखते हैं और दवाइयों को देखते हैं और अपने आपको आश्वस्त कर लेते हैं। पर परिणाम कुछ भी नहीं आता, क्योंकि मनोभाव वैसे-के-वैसे बने हुए हैं। हमें डॉक्टरी परीक्षण के साथ मनोभावों का भी विश्लेषण करना चाहिए। हमें यह जानने का प्रयत्न करना चाहिए कि कौन-सी भावना-ईर्ष्या, कलह, क्रोध, अहंकार -के कारण यह बीमारी पैदा हुई है। बीमारी के उत्पादक तत्व भाव-चिकित्सा का यह महत्त्वपूर्ण सूत्र है-बीमारी के समय स्वयं का निरीक्षण करना, अपनी भावनाओं का निरीक्षण करना। हमें यह ज्ञात होना चाहिए कि क्रोध, भय, चुगली और निन्दा से बीमारियां पैदा होती हैं। अठारह पापों के सेवन से भिन्न-भिन्न बीमारियां उत्पन्न होती हैं । ये सावध योग बीमारियों के उत्पादक हैं। सब यह अनुभव करते हैं कि जब डर लगता है, तब धड़कन बढ़ जाती है, रक्तचाप बढ़ जाता है । बीमारी किसने पैदा की कीटाणुओं ने या मनोभावों ने । क्रोध के तीव्र आवेश से हृदय की बीमारी हो जाती है, आदमी मर जाता है। हार्ट की बीमारी किसने पैदा की, कीटाणुओं ने या क्रोध ने। तीव्र ईर्ष्या और घृणा से अल्सर जैसे रोग हो जाते हैं । अल्सर का मूल उत्पादक कौन बना ? कीटाणु या ईर्ष्या-घणा ? आत्मग्लानि के भाव से क्षय रोग हो जाता है। ऐसी घटनाएं घटती हैं और आज के मनश्चिकित्सक इस दिशा में सजग भी है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003056
Book TitleChitt aur Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size16 MB
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