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मन का शरीर पर प्रभाव
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या
उसका सारा कष्ट मिट गया । उसका चिल्लाना, कराहना और रोना - सब बंद हो गए | क्या दर्द नष्ट हो गया ? कहां गया दर्द ? दर्द नष्ट नहीं हुआ दर्द जहां था, वहीं है । कोई अन्तर नहीं आया । किन्तु मादक द्रव्य के प्रयोग से उसका संवेदन- केन्द्र शून्य कर दिया गया । कष्ट की अधिकता होने पर भी उसको उसकी अनुभूति नहीं होती । दर्द संवेदन से होता है, स्थान रोग से नहीं होता । संवेदन को शून्य कर देने पर उस कष्ट की अनुभूति समाप्त हो जाती है । संवेदन- केन्द्र सक्रिय होता है तो कष्ट होता है | संवेदनकेन्द्र निष्क्रिय होता है तो कष्ट नहीं होता । जब मन संवेदन- केन्द्र के साथ जुड़ता है तब तीव्र वेदना का अनुभव होता है और जब मन अन्य किसी स्थान पर लगा होता है तो वेदना की अनुभूति नहीं होती । प्रश्न है मन के योग की संयुति का ।
अपानवायु और मनः शुद्धि
अशुद्ध होना स्थान नाभि से — मल, मूत्र, वीर्य
अपान और मन में गहरा सम्बन्ध है । अपानवायु का भी बीमारी का एक कारण बनता है । अपानवायु का मुख्य नीचे और पृष्ठभाग के पाष्णिदेश तक है । उसका कार्य हैआदि का विसर्जन करना। उसके विकृत होने से मन में अप्रसन्नता होती है। और उसकी शुद्धि से प्रसन्नता होती है । नीचे के भाग में होने वाले मसा आदि तथा वीर्य - सम्बन्धी रोग अपानवायु दूषित होने से होते हैं, उसकी शुद्धि में नहीं होते । अपानवायु का सम्बन्ध पेट-शुद्धि से है । पेट की अशुद्धता में कोष्ठबद्धता हो जाती है तथा कृमि आदि जीव पैदा हो जाते हैं । उसकी शुद्धि के लिए अश्विनी मुद्रा तथा नाभि पर ध्यान करना श्रेष्ठ प्रयोग है ।
शरीर की शक्ति का स्रोत नाभि और गुदा के बीच में है । अपान को जीतने से शक्ति का स्रोत विकसित होता है । घोड़े की शक्ति का रहस्य उसकी संकोच - विकोच की मुद्रा है । अपानवायु दूषित हो जाए तो वह सौ बार अश्विनी मुद्रा करने से शुद्ध होती है । मूलबन्ध भी इसमें सहयोगी बनता है । प्राणवायु को बाहर निकालकर यथाशक्ति रोकने से भी अपानवायु शुद्ध होती है ।
साम्य ही स्वस्थता है
हठयोग का अर्थ -- प्राण और अपान का योग । 'ह' – सूर्य और
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मिलन | रहस्यवादी
'ठ' – चन्द्र – 'हठ' का अर्थ है - सूर्य और चन्द्र का कविगण ने सूर्य और चांद के मिलने की चर्चा की है। सूर्य और चांद का मिलन अर्थात् रात और दिन का मिलाप । सूर्य और चांद का मिलन नाभि में होता है । मूलबन्ध के साथ श्वास को नाभि में ले जाने से प्राण और अपान
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