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मन का शरीर पर प्रभाव
विज्ञान की दो शाखाएं हैं—शरीर विज्ञान और मनोविज्ञान | मेडिकल साइंस में बीमारी का आधार कीटाणु और विषाणु बतलाया गया । साईकोलॉजी के अनुसार केवल कीटाणु और विषाणु ही बीमारी के कारण नहीं हैं, उन से भी बड़ा कारण है मानसिक विकृतियां, मनोबल की कमी । जिसका मनोबल कमजोर होता है वह व्यक्ति रोग से आक्रान्त होता है । जिसका मनोबल मजबूत होता है, रोग से लड़ने की क्षमता होती है । मनोबल से रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाया जा सकता है ।
उसमें
जिस व्यक्ति में मंत्री का विकास नहीं होता उस व्यक्ति का मनोबल विकसित नहीं होता । शत्रुता एक जहरीला कीड़ा है, वह जिसके पीछे लगता है, उसे निरन्तर सताता रहता है और तब मन ही मन मनोबल दबता चला जाता है । वह कुंठा पैदा करता है, अवसाद पैदा करता है और घृणा पैदा करता है । कुंठा, घृणा, अवसाद और विषण्णता - ये ऐसे भयंकर कीटाणु हैं, जो स्वास्थ्य को लीलते रहते हैं, आदमी बीमारी होता चला जाता है ।
बीमारी का कारण
प्रश्न है— बीमारी क्यों होती है ? कीटाणुओं के कारण पैदा होती है । व्यक्ति को फोड़ा) हो गयी । हम समझेंगे, शरीर में कोई विषमता, द्वेष, घृणा का भाव जागृत होने पर पेट में अल्सर हो जाता है । व्यक्ति सोचता
।
गुस्सा आया, मन में बुरा भाव आया, दस्तें लगनी शुरू हो गईं । है - यह कैसे पैदा हो गई। खान-पान में कोई गड़बड़ हुई है से चिन्तन करता है, पर यह नहीं सोचता कि बीमारी स्वयं का रहा है । मानसिक बीमारियों के कारण मेडिकल साइंस में एक शब्द हो गया 'साइसोसोमेटिक डिजीज' यानी 'मनोकायिक बीमारियां' अर्थात् मन से शरीर पर उतरने वाली बीमारियां ।
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डॉक्टर बताएगा - बीमारी अल्सर की बीमारी (पेट में गड़बड़ हो गई है । मन में
कष्ट होता है मन की संयुति से
प्रत्येक घटना के साथ मानसिक प्रभाव का होना सहज है । कष्ट में भी यही होता है । रोग से कष्ट नहीं होता । कष्ट होता है रोग के संवेदन से । एक रोगी तड़प रहा है, चीख रहा है, कराह रहा है मरने का सा अनुभव कर रहा है । मर्फिया का एक
और असह्य कष्ट से
इन्जेक्शन दिया ओर :
अनेक पहलुओं
मन पैदा कर
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