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रंगों का मन पर प्रभाव
है, उसका बुद्धिबल शक्तिशाली होता जाता है । पीले रंग का जो मनोवैज्ञानिक प्रभाव है, वह है-चित्त की प्रसन्नता । जैन साधना पद्धति का अपूर्व प्रयोग,
___ आज रंग के विज्ञान में बहुत खोजें हुई हैं और हो रही हैं। रंग का मनोविज्ञान कहता है कि पीला रंग मन की प्रसन्नता का प्रतीक है। इससे मन की दुर्बलता मिटती है, आनन्द बढ़ता है। आगम कहते हैं-पीत-लेश्या से चित्त प्रशांत होता है, शांति बढ़ती है और आनन्द बढ़ता है। ' दर्शन की शक्ति पीले रंग से विकसित होती है । दर्शन का अर्थ है-साक्षात्कार, अनुभव । इससे तर्क की शक्ति नहीं बढ़ती, साक्षात्कार की शक्ति बढ़ती है, अनुभव की शक्ति का विकास होता है।
पीले रंग की क्षमता है-मन को प्रसन्न करना, बुद्धि का विकास करना, दर्शन की शक्ति को बढ़ाना, मस्तिष्क और नाड़ी-संस्थान को सुदृढ़ करना, सक्रिय बनाना । यदि हम हृदय-केन्द्र या आनन्द-केन्द्र पर पीले रंग का ध्यान करते हैं और मस्तिष्क तथा विशुद्धि-केन्द्र पर पीले रंग का ध्यान करते हैं तो अंधकार के रंगों द्वारा निर्मित आदतें विघटित होने लगती हैं और नई आदतें बननी प्रारम्भ हो जाती हैं । लेश्या-ध्यान का प्रयोग बहुत ही महत्त्वपूर्ण प्रयोग है। यह जैन साधना पद्धति का अपूर्व प्रयोग है। । रंग: कुछ प्रयोग
मुनि का ध्यान करते समय कृष्ण वर्ण का अनुचिंतन करना बहुत उपयोगी है। सामान्यतया कृष्ण वर्ण दीनता का सूचक है। किन्तु उसकी एक विशेषता यह है कि वह बाहर से आने वाली रश्मियों को अपने में केन्द्रित कर लेता है, इसलिए उसका अनुचिंतन करने वाला बाहरी प्रभावों से अपने आप को बचा लेता है।
एकांत में बैठकर आंखें मूंदकर दस मिनट तक मस्तिष्क में पीत वर्ण का ध्यान करने से ओज बढ़ता है और मस्तिष्क बलवान होता है। आंखें मूंदकर पीले रंग की ज्योति का ध्यान करने से आलस्य दूर होता है और बुद्धि तीव्र होती है।
लेश्या कोरी जानने, देखने और रटने की बात नहीं है, यह साधना की प्रक्रिया है, समूचे व्यक्तित्व को बदलने की प्रक्रिया है।
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