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रंगों का मन पर प्रभाव
इन्द्रिय-विजय का भाव उत्पन्न करता है ।
सफेद रंग मनुष्य में गहरी शांति और जितेन्द्रियता का भाव उत्पन्न
करता है ।
मानसिक विचारों के रंगों के विषय में एक दूसरा वर्गीकरण भी मिलता है, जिसका प्रथम वर्गीकरण के साथ पूर्ण सामंजस्य नहीं है । वह इस प्रकार
विचार
भक्ति विषयक
कामोद्वेग विषयक
तर्क-वितर्क विषयक
प्रेम विषयक
स्वार्थ विषयक
क्रोध विषयक
रंग
आसमानी
लाल
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पीला
गुलाबी
६१
हरा
लाल - काले रंग का मिश्रण
रंग के दो प्रकार
इन दोनों वर्गीकरणों के तुलनात्मक अध्ययन से ऐसा प्रतीत होता हैं कि प्रत्येक रंग दो प्रकार का होता है
१. प्रशस्त
२. अप्रशस्त
कृष्ण, नील और · कापोत -- अप्रशस्त कोटि के ये तीनों रंग मनुष्य के विचारों पर बुरा प्रभाव डालते हैं तथा अरुण, पीला और सफेद - प्रशस्त कोटि के ये तीनों रंग मनुष्य के विचारों पर अच्छा प्रभाव डालते हैं । क्रोध से अग्नि तत्त्व प्रधान हो जाता है । उसका वर्ण लाल है । मोह से जल तत्त्व प्रधान हो जाता है । उसका वर्ण सफेद या बैंगनी है । भय से पृथ्वी तत्त्व प्रधान हो जाता है। उसका वर्ण पीला है । प्रशस्त लेश्याओं के जो वर्ण हैं, उनकी प्रधानता क्रोध आदि से होती है । इन दोनों निरूपणों में विरोधाभास है । इससे यह जानने के लिए अवकाश मिलता है कि लाल, पीला और सफेद वर्ण अच्छे विचारों को उत्पन्न नहीं करते किन्तु प्रशस्त कोटि के लाल, पीला और सफेद वर्ण ही अच्छे विचारों को उत्पन्न करते हैं ।
विकास के लिए रंगों का मानसिक अनुचितन करना चाहिए । मुख्यतया अनुचितनीय वर्ण ये हैं- अरुण, पीत और श्वेत ।
तेजोलेश्या
तेजोलेश्या का बाल सूर्य जैसा लाल रंग है । लाल रंग निर्माण का रंग है | लाल रंग का तत्त्व है -अग्नि । हमारी सारी सक्रियता, शक्ति, तेजस्विता, दीप्ति, प्रवृत्ति - सबका स्रोत है लाल रंग । लाल रंग हमारा
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