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________________ चित्त और मन ० पीला रंग बौद्धिक विकास और भावना शुद्धि का प्रतीक है । ० हरा रंग विषापहार होता है।। ० नीला रंग अध्यात्म विकास का प्रेरक है । रस्न चिकित्सा रत्न चिकित्सा का प्रचलन यत्र-तत्र है। इसका भी वैज्ञानिक कारण है। रत्नों में 'कॉस्मिक रे'-जागतिक रश्मियां अधिक संचित रहती हैं। इन रश्मियों के विभिन्न रंग विभिन्न प्रकार के प्रभाव उत्पन्न करते हैं । ये रंग दुष्प्रभावों से बचाते हैं। रत्न चिकित्सक डॉ० गांगुली ने एक सुन्दर पुस्तक लिखी है। उसमें विस्तार से रत्नों के प्रभावों पर प्रकाश डाला गया है। ग्रहों के जो-जो रंग हैं, वे रंग इन रत्नों में प्राप्त होते हैं । रत्नों के रंगों और ग्रहों के रंगों में बहुत गहरा सम्बन्ध है। इसीलिए ज्योतिषी अमुक-अमुक ग्रहों के प्रभाव को दूर करने के लिए अमुक-अमुक रंगों के रत्नों की अंगुठियां पहनने का निर्देश देते हैं । उनसे ग्रहों का प्रभाव कम होता है और व्यक्ति दुष्प्रभावों से बच जाता है। वैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य में रंग मनुष्य का शरीर पौद्गलिक है। उसके इन्द्रिय और सहायक मन भी पौद्गलिक हैं। उसकी सारी प्रवृत्तियों में पुद्गल का बहुत बड़ा योग रहता है। पुद्गल के चार लक्षण हैं-वर्ण, गंध, रस और स्पर्श । इन चारों में पहला वर्ण-रंग है। वर्ण के पांच प्रकार हैं-काला, पीला, नीला, लाल और सफेद । इनके मिश्रण से अनेक रंग उत्पन्न होते हैं। आधुनिक वैज्ञानिक रंग के सात प्रकार मानते हैं-लाल, हरा, पीला, आसमानी, गहरा नीला, काला और हल्का नीला। उनके अनुसार सफेद रंग मौलिक नहीं है। वह सात रंगों के एकीकरण से बनता है। रंगों का प्राणी-जीवन के साथ बहुत गहरा सम्बन्ध है। ये हमारे शरीर तथा मानसिक विचारों को भी प्रभावित करते हैं। लेश्या के सिद्धांत द्वारा इसी प्रभाव की व्याख्या की गई है। रंग की प्रकृति वैज्ञानिक परीक्षणों के द्वारा रंगों की प्रकृति पर काफी प्रकाश डाला गया है । विज्ञान के अनुसार रंगों की प्रकृति यह हैनाम प्रकृति लाल गर्म नारंगी लाल-नारंगी बहुत गर्म गर्म Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003056
Book TitleChitt aur Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size16 MB
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