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रंगों का मन पर प्रभाव
जो तैजस शरीर है, जो प्राणशक्ति है, उसकी गति तीव्र हो जाती है। वह झटका देती है। यह प्राण का प्रयोग है, संकल्प का प्रयोग है और मन के विलय का प्रयोग है। मन विलीन हुआ और व्यक्ति दूसरी दुनिया में पहुंच जाता है, सूक्ष्म जगत् के साथ सम्पर्क स्थापित कर लेता है, उसे विचित्र प्रकार की अनुभूति होने लग जाती है। लेश्या का सिद्धांत
जैन दर्शन में 'लेश्या' पर बहुत काम हुआ है। लेश्या की खोज एक महत्त्वपूर्ण खोज है। लेश्या का भावों के साथ गहरा सम्बन्ध है।
वर्तमान में रंगों पर बहुत महत्त्वपूर्ण काम हुआ है, अनेक प्रयोग और तथ्य सामने आए हैं। एक प्रयोग किया गया। एक कमरे में बैंगनी रंग की पुताई की गई। उससे मजदूरों को धान उठाने के लिए कहा गया । वे साठ किलो भार उठाते-उठाते थककर चूर हो जाते। फिर उन्हें लाल रंग से पुते कमरे में भार उठाने के लिए कहा गया। वहां कुछ विश्राम कर उन मजदूरों ने ७०-७५ किलो वजन आसानी से उठा लिया। लाल रंग सक्रियता पैदा करता है और स्नायुओं को स्फूति देता है इसीलिए यह परिवर्तन आया।
आजकल इन परामनोवैज्ञानिक प्रयोगों में कम्युनिस्ट देश भी आगे बढ़कर काम कर रहे हैं। रूस में एक प्रयोग किया गया। एक विद्यालय के छात्र बहुत उदंड और पढ़ने में आलसी हैं। अधिकारियों ने उस विद्यालय की सारी दीवारें गुलाबी रंग से पुतवा दी। कुछ दिन बीते । विद्यार्थियों की उद्दडता कम हो गयी और उनकी दक्षता बढ़ गई। वे पढ़ने में रस लेने लगे। यह प्रयोग बहुत सफल रहा। पीला रंग का प्रभाव
रंग ज्ञान-तंतुओं और मन पर भी प्रभाव डालता है। पीला रंग ज्ञानतंतुओं को ठीक करता है। यह आचार्य का रंग है। आचार्य ज्ञान के प्रतीक होते हैं। ज्ञान की परम्परा के वे संवाहक होते हैं। आचार्य का सम्बन्ध पीले रंग से है। पीले रंग का सम्बन्ध ज्ञान-तंतुओं के साथ रहता है। जिनके ज्ञानतंतु और मस्तिष्क कमजोर हैं, वे पीले रंग का प्रयोग कर लाभ उठा सकते
प्रेक्षाध्यान में रंगों के साथ श्वास का प्रयोग होता है। उसी रंग का ध्यान करना और उसी रंग का श्वास लेना, इससे रंग का संतुलन बना रहता है और इसका आश्चर्यकारी प्रभाव देखा गया है ।
रंग का मनोवैज्ञानिक प्रभाव ही नहीं होता, उसका रासायनिक प्रभाव भी होता है। उसको रसायन प्रभावित करते हैं। उनका अच्छा प्रभाव भी होता है और बुरा प्रभाव भी होता है।
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