SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 69
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ रंगों का मन पर प्रभाव रंग सिद्धांत - रंग, शब्द, मन और उच्चारण-ये चार मुख्य बातें हैं । रंग का हमारे चिंतन और जीवन के साथ बहुत गहरा सम्बन्ध है। रंग हमारे शरीर को प्रभावित करता है, मन को प्रभावित करता है। रंग-चिकित्सा पद्धति आज भी चलती है। 'कलर थेरापी'—यह पद्धति चल रही है। एक पद्धति है 'कॉस्मिक रे थेरापी' अर्थात् दिव्य-किरण-चिकित्सा। इसका भी रंग के साथ सम्बन्ध है। रंग और सूर्य की किरण-दोनों के साथ इसका सम्बन्ध है। प्रकाश के साथ यह संयुक्त है। रंग हमारे शरीर और मन को विविध प्रकार से प्रभावित करता है । उससे रोग मिटते हैं, फिर चाहे वे रोग शारीरिक हों या मानसिक । मानसिक रोग-चिकित्सा में भी रंग का विशिष्ट स्थान है। पागलपन को रंग के माध्यम से समाप्त कर दिया जाता है। रंग थोड़ा-सा विकृत हुआ, आदमी पागल हो जाता है। रंग की पूर्ति हुई, आदमी स्वस्थ बन जाता है। शरीर में रंग की कमी के कारण अनेक बीमारियां उत्पन्न होती हैं। 'कलर थेरापी' का यह सिद्धान्त है कि बीमारी के कोई कीटाणु नहीं होते। रंग की कमी के कारण बीमारी होती है। जिस रंग की कमी हुई है, उसकी पूर्ति कर दो, आदमी स्वस्थ हो जाएगा, बीमारी मिट जाएगी। बीमारी का होना, बीमारी का न होना या स्वस्थ होना, यह सारा रंगों के आधार पर होता है। चिन्तन और रंग हमारे चिंतन के साथ भी रंगों का सम्बन्ध है। जब मन में खराब चिंतन आता है, अनिष्ट बात उभरती है, अशुभ विचार आते हैं तब चिंतन के पुद्गल काले वर्ण के होते हैं, लेश्या कृष्ण होती है। अच्छा चिंतन करते हैं, हित-चिन्तन करते हैं, शुभ विचार आते हैं तब चिंतन के पुद्गल पीतवर्ण के होते हैं, पीले होते हैं। लाल वर्ण के भी हो सकते हैं और श्वेत वर्ण के भी हो सकते हैं । उस समय तेजोलेश्या होगी या पद्मलेश्या होगी या शुक्ललेश्या होगी। बुरे चिंतन के पुद्गलों का वर्ण है काला और अच्छे चितन के पुद्गलों का वर्ण है पीला, लाल या श्वेत । बड़ा सम्बन्ध है रंग का चिंतन के साथ । जिस प्रकार का चिन्तन होता है उसी प्रकार का रंग होता है। शरीर के साथ रंग का गहरा सम्बन्ध है। प्रत्येक व्यक्ति के शरीर के आस-पास रंग का एक आभामंडल है। उसमें अनेक रंग होते हैं। किसी के आभामंडल का रंग काला होता है, किसी के नीला और किसी के लाल और सफेद । आभामंडल अनेक वर्षों का भी होता है। सूक्ष्म जगत् का रहस्य हम सूक्ष्म जगत् को देखें। कोई भी दुनिया का ऐसा रंग बाकी नहीं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003056
Book TitleChitt aur Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy