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रंगों का मन पर प्रभाव
बहुत वर्ष पहले की बात है । आदर्श साहित्य संघ, चूरू के व्यवस्थापक श्री जयचन्दलालजी दफ्तरी कलकत्ता में थे। एक बार उन्होंने एक प्राकृतिक चिकित्सक से बातचीत करते हुए कहा-मुझे प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति में कोई विश्वास नहीं है । यदि तुम कोई चमत्कार दिखाओ तो जानूं । डॉक्टर ने कहा- ठीक है। उसने सूर्य के आतप में रखी हुई लाल रंग की बोतल का पानी पिलाया। सायं होते-होते दफ्तरीजी को खून के दस्त होने लगे । केवल पानी का यह परिणाम था। उन्होंने डॉक्टर से कहा--तुम्हारी बात मानता हूं कि प्राकृतिक चिकित्सा में चमत्कार है। दुनिया चमत्कार को नमस्कार करती है। प्रकाश का उनचालीसवां प्रकंपन
रंगों का भी अपना चमत्कार होता है। उसका शरीर, मन और भावना के स्तर पर बहुत प्रभाव होता है। इस शताब्दी में पश्चिमी जगत् में 'कलर थेरेपी' और 'कोमो थेरेपी' का बहुत प्रचलन रहा है। प्रकाश का उनचालीसवां प्रकंपन 'रंग' है। जैसे सूर्य की किरणों का असर होता है, वैसे ही रंगों का असर होता है। वह भी तो प्रकाश ही है। हम स्वयं अनुभव करते हैं—जिस दिन आकाश बादलों से घिरा रहता है, अग्नि मंद हो जाती है, शरीर सुस्ताने लग जाता है। धूप होती है तो आदमी में स्फूर्ति होती है । भारत के लोगों को इस बात का अधिक अनुभव है, क्योंकि यहां सूर्य का आतप अधिक समय तक मिलता है। अन्यान्य देशों में वह कम दिखाई देता है, इसलिए इसके आतप का अनुभव कम है। वहां जब सूरज निकलता है तब उत्सव-सा मनाया जाता है और समुद्र के किनारों पर हजारों-हजारों व्यक्ति आतप का सेवन करने के लिए पहुंच जाते हैं।
___ जैसे सूरज के ताप और प्रकाश का हमारे शरीर पर प्रभाव होता है, वैसे ही रंगों का प्रभाव भी हमारे शरीर और मन पर होता है ।
शब्द और मन—दोनों का समुचित योग होते ही एक शक्ति पैदा होती है। हम बोलते हैं । हमारे बोलने के साथ-साथ विद्युत् की तरंगें पैदा होती हैं। हम सोचते हैं । हमारे सोचने के साथ-साथ विद्युत की तरंगें पैदा होती हैं । उन विद्युत्-तरंगों का आश्चर्यकारी प्रभाव होता है।
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