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ध्वनि का मन पर प्रभाव
बात अपने अनुभव में आती है, जिसका स्वयं अनुभव होता है, उसके विषय में पूरे आत्मविश्वास के साथ कुछ भी कहने में कोई कठिनाई नहीं होती, किंतु जिसका व्यक्ति स्वयं प्रयोग नहीं कर लेता, उसके विषय में बलपूर्वक कुछ कहना दूसरे को भुलावे में डालने जैसा है। यह उचित नहीं होता। यह सच है कि मंत्र की आराधना से ऐसा होता है किंतु मैं यह नहीं कह सकता कि यह मेरा अपना अनुभव है। शब्द-सिद्धि का अर्थ .. अपेक्षा है-हम प्रकम्पनों का ठीक उपयोग करें। उनकी शक्ति का उपयोग करें। हम ध्वनि की तरंगों का उपयोग करना सीखें। ध्वनि की तरंगों से उत्पन्न शक्ति का ठीक नियोजन करना सीखें । जब ध्वनि की तरंगें मन की तरंगों के साथ जुड़ जाती हैं, संकल्प की तरंगों के साथ जुड़ जाती हैं, श्वास की तरंगों के साथ जुड़ जाती हैं, तब बहुत बड़ी शक्ति पैदा होती है।
जब शब्द के कंपन अपनी चरम स्थिति तक पहुंचकर 'क्ष' किरणों--- एक्सरेज के रूप में परिणत हो जाते हैं तब उनकी गति एक करोड़ मील प्रति सेकेण्ड हो जाती है। संकल्प के कंपन उसमें शक्ति का नियोजन कर देते हैं। इसलिए योग के मर्मज्ञ आचार्यों ने कहा-जिनके निश्चय में कोई छिद्र नहीं है, वे क्या नहीं कर सकते ? उनके लिए कुछ भी दुष्कर नहीं है । शब्द की सिद्धि आस्था की सिद्धि से होती है। आस्थाहीन शब्द शक्ति-शून्य होते हैं । शब्द को साधने का अर्थ है-आस्था और शब्द की दूरी को समाप्त कर देना । शब्द को साधने का अर्थ है--ध्वनि को आस्था का कवच पहना देना।
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