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________________ ५० चित्त और मन की उपलब्धि होती है तब व्यक्ति को हर्ष होता है। जहां हर्ष होता है वहां शोक भी अवश्य होगा। दोनों साथ-साथ चलते हैं। कभी हर्ष होगा तो कभी शोक भी होगा और कभी शोक होगा तो कभी हर्ष भी होगा। हर्ष और शोक का एक द्वन्द्व है । मंत्र की आराधना के द्वारा जो प्राप्त होता है वह है चित्त की प्रसन्नता, मन की निर्मलता। प्रसन्नता हमारे अन्तःकरण की निर्मलता है। इसमें मैल का अवकाश ही नहीं रहता । न हर्ष का मैल होता है और न शोक का मैल होता है। कोई मैल नहीं रहता। सारे मैल धुल जाते हैं। न राग का मैल और न द्वेष का मैल । मन बिलकुल निर्मल और प्रसन्न बन जाता है। मानसिक तोष इसका दूसरा परिणाम के मानसिक तोष । बिना किसी उपलब्धि के भी मन संतुष्ट हो जाता है। जो संतोष पदार्थ की उपलब्धि के पश्चात् होता है, कुछ मिलने पर होता है, वह वास्तव में संतोष नहीं होता, वासना की तृप्ति-मात्र होता है । तृप्ति के साथ अतृप्ति जुड़ी होती है। जहां तृप्ति होगी, वहां अतृप्ति भी होगी। पानी पिया। प्यास बुझ गई । एक घंटा बीता, दो घंटे बीते, फिर प्यास लग जाएगी। तृप्ति के साथ अतृप्ति जुड़ी ही रहती है । तोष के साथ, संतोष के साथ कुछ भी जुड़ा नहीं रहता। पदार्थ की उपलब्धि के बिना भी मन संतोष से भर जाता है, सारी चाह मिट जाती है। शरीर पर प्रभाव मंत्र की आराधना से स्मृतिशक्ति का विकास होता है, बौद्धिक शक्तियों का विकास होता है और अनुभव की चेतना जागती है। ये मानसिक निष्पत्तियां हैं, जो प्रत्यक्ष अनुभव में आती हैं। मंत्र की आराधना का शरीर पर भी प्रभाव होता है। मंत्र की आराधना जैसे-जैसे विकसित होने लगती है, अनायास ही व्यक्ति की आंखों में आंसू उछल पड़ते हैं। शरीर रोमांचित हो जाता है। कंठ गद्गद् हो जाता है। वाणी भारी-सी हो जाती है । ये शारीरिक लक्षण प्रकट होने लगते हैं। स्वास्थ्य का भी परिवर्तन होता है। जाप करने वाला या मंत्र की आराधना करने वाला व्यक्ति क्षय, अरुचि, अग्नि-मंदता आदि-आदि बीमारियों पर नियंत्रण पा लेता है। मेरा अनुभव जहां तक मानसिक उपलब्धियों का प्रश्न है, मैं अपने अनुभव के बल पर कह सकता हूं कि ये उपलब्धियां होती हैं, किंतु जहां शारीरिक उपलब्धियों का प्रश्न है, मैं अपने अनुभव के आधार पर यह नहीं कह सकता कि ऐसा होता ही है। सिद्धांततः ऐसा लगता है कि यह होता है, इसमें कोई संदेह नहीं है। जो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003056
Book TitleChitt aur Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size16 MB
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