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ध्वनि का मन पर प्रभात
लिया, अपने मस्तिष्क के चारों ओर एक मजबूत कवच बना लिया, उसमें बुरे विचारों के परमाणु कभी प्रवेश नहीं कर पाएंगे। वे परमाणु आएंगे, टकराएंगे, टकरा-टकराकर लौट जाएंगे, भीतर नहीं जा सकेंगे, क्योंकि भीतर प्रवेश करने में सक्षम नहीं रह पाएंगे। डाक्टर का काम
डाक्टर दो दिशाओं में काम करता है । वह बीमारी के कीटाणुओं को नष्ट करने की दवा देता है और साथ-साथ प्रतिरोधात्मक शक्ति को बढ़ाने का भी उपाय करता है । जिस रोगी की प्रतिरोधात्मक शक्ति कम होती है, जिसका रेजिस्टेंस पॉवर कम होता है, उसको दी जाने वाली औषधियां अधिक लाभप्रद नहीं होतीं। जब शरीर में बीमारियों से लड़ने की शक्ति नहीं है तब दवाई क्या करेगी ? दवाई काम तब करती है, जब शरीर उसका काम करे, शरीर की प्रकृति उसका सहयोग करे । प्रतिरोधात्मक शक्ति विकसित होती है, बीमारी से जूझने की क्षमता होती है, तब दवाई काम करती है। दोनों साथ-साथ चलने चाहिए-बीमारी के कीटाणुओं का नाश और उनसे जूझने की प्रतिरोधात्मक शक्ति का विकास । मंत्र का काम
मंत्र के द्वारा दोनों काम होते हैं- (१) मन की विकृति मिटती है ( ) प्रतिरोधात्मक शक्ति विकसित होती है। शक्ति इतनी बढ़ जाती है कि बाहर के आक्रमण का भय नहीं रहता। ऊर्जा का वातावरण प्रबल बन जाता है । बाहर के आघात कम पहुंचते हैं या पहुंचते ही नहीं। जिस व्यक्ति ने नमस्कार मन्त्र जैसे महामंत्र से अपने मन को भावित कर लिया, मन्त्र की हजारों-लाखों आवृत्तियां कर मन को शक्ति-संपन्न बना लिया, वह व्यक्ति अप्रिय या प्रतिकूल घटनाओं को द्रष्टा बनकर देखता है, भोगता नहीं। उन घटनाओं का उसके मन पर कोई असर नहीं होता । इस प्रतिरोधात्मक शक्ति के निर्माण के लिए, मन को भावित करने के लिए, एक सुदृढ़ कवच या वज्रपंजर बनाने के लिए भावना का प्रयोग बहुत जरूरी है। भावना प्रेक्षा-ध्यान आधारभूत तत्त्व है। इस आधार को मजबूत कर लेने पर प्रेक्षा-ध्यान सुविधापूर्वक हो सकता है, अवरोध समाप्त हो जाते हैं । मन की प्रसन्नता
मंत्र आराधना की निष्पत्तियां आंतरिक भी हैं और बाह्य भी हैं। मानसिक भी हैं और शारीरिक भी हैं । मंत्र की आराधना से जब मंत्र सिद्ध होने लगता है तब कुछ निष्पत्तियां हमारे सामने प्रकट होती हैं। पहली निष्पत्ति है-मन की प्रसन्नता । जैसे-जैसे मंत्र सिद्ध होने लगता है, मन में प्रसन्नता आने लगती है । हर्ष और प्रसन्नता में बहुत बड़ा अन्तर है । किसी प्रिय वस्तु
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