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________________ चित्त और मन यह सचाई है - निविचार स्थिति में पहुंचने से पहले हमें विचार का सहारा लेना ही पड़ता है । Ye शिथिलन की महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया वाणी की एक शक्ति है भावना और दूसरी शक्ति है उच्चारण । उच्चारण के आधार पर ही समूचे मंत्र शास्त्र का विकास हुआ है । भावना और उच्चारण के आधार पर ही मंत्र शक्ति का विकास होता है। तरंग का सिद्धान्त भी इसके साथ जुड़ता है । आज वाणी पर आधुनिक खोजें हुई हैं, मंत्रशास्त्रीय खोजें हुई हैं । इन खोजों में तीनों शक्तियों की बात निर्णीत हुईं है । तीनों बातें जुड़ी हुई मिलती हैं। पहली बात है भावना | दूसरी बात है उच्चारण और तीसरी बात है उच्चारण के द्वारा उत्पन्न वाणी की शक्ति । उच्चारण के साथ-साथ तरंग पैदा होती है । एक शब्द का उच्चारण होता है और अल्फा-तरंगें पैदा हो जाती हैं। एक शब्द का उच्चारण होता है और थेटा तरंगें पैदा हो जाती हैं, बेटा तरंगें पैदा हो जाती हैं । इन तरंगों के आधार पर मंत्रों की कसौटी की जाती है । 'ओम्' का उच्चारण होता है, अल्फा-तरंगें पैदा होती हैं और मस्तिष्क रिलेक्स हो जाता है, शिथिल हो जाता है । जैसे-जैसे मस्तिष्क की शिथिलता बढ़ती है, अल्फा-तरंगें पैदा होती चली जाती हैं। शिथिलन के लिए यह बहुत ही महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया है । जितने भी बीज मंत्र हैं, उनसे भिन्न-भिन्न तरंगें उत्पन्न होती हैं और वे मस्तिष्क को प्रभावित करती हैं । बीजाक्षर हैं - अ, सि, आ, उ, सा, अहं, ओम्, ह्रीं, श्रीं क्लीं । ये सारे बीजमंत्र हैं। इनसे उत्पन्न तरंगें ग्रन्थि-संस्थान को प्रभावित करती हैं, अन्तःस्रावी ग्रंथियों के स्राव को संतुलित करती हैं । ग्रन्थियों का स्राव 'ह' के उच्चारण से संतुलित हो जाता है । मस्तिष्क अस्त-व्यस्त होता है । एक शब्द का जप शुरू होता है और मस्तिष्क व्यवस्थित हो जाता है । मंत्र से भावित मन 1 विकल्प और विचार के परमाणु हमारे मस्तिष्क के आस-पास मंडराते रहते हैं । व्यक्ति प्रेक्षा करने बैठता है, बीच में ही इतने विकल्प उठ जाते हैं कि प्रेक्षा कहीं रह जाती है, मन विश्व की यात्रा करने निकल पड़ता है, ऑफिस की या दूकान की यात्रा करने के लिए प्रस्थान कर देता है । जब हम मन को भावित करना सीख जाते हैं, संकल्पशक्ति दृढ़ हो जाती है तब ये यात्राएं नहीं होतीं । हमारी आत्मा भावित है, मन भावित है और मंत्र की आराधना से हमारी संकल्पशक्ति विकसित है तो वे परमाणु भीतर प्रवेश नहीं कर पाएंगे । मन्त्र एक कवच है, प्रतिरोधात्मक शक्ति है, एक सशक्त दुर्ग है । उसे भेदकर बाहर का एक अणु भी भीतर प्रवेश नहीं पा सकता। जिस व्यक्ति ने आध्यात्मिक मंत्रों की आराधना के द्वारा अपने मन को भावित कर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003056
Book TitleChitt aur Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size16 MB
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