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________________ ध्वनि का मन पर प्रभाव ४७ हमें प्रेयस् के मार्ग से हटाकर श्रेयस् के मार्ग पर ले जाने में सक्षम हो सकते हैं । 'ओम्' एक ऐसा शब्द है, जो अत्यन्त प्रभावोत्पादक होता है। भारत के प्रायः सभी धर्म इसे मान्यता देते हैं । 'अहम्' भी शक्तिशाली शब्द है। यह नहीं कहा जा सकता-चौबीस घटे इन शब्दों का ही ध्यान करते रहें, जाप करते रहें। यह संभव भी नहीं है । हम इन शब्दों का जाप करें और इन्हें श्वास के साथ जोड़ दें। धीरे-धीरे वइ शब्द श्वास के साथ इतना घुल-मिल जाएगा कि अलग से उसके जाप की आवश्यकता नहीं रहेगी, वह अपने आप भीतर होता रहेगा। प्रन्थि भेदन की पद्धति का विकास __हम जप करते हैं, संकल्प करते हैं। यदि हमारा जप, हमारा संकल्प स्थूल वाणी में होगा तो उतना लाभदायी नहीं होगा, उतना शक्तिशाली नहीं होगा और उससे हम लाभान्वित नहीं होंगे । यदि हमारा जप, हमारा संकल्प सूक्ष्म वाणी में होगा तो वह अधिक शक्तिशाली बनेगा। हमें सूक्ष्म का अभ्यास करना है। जैसे हम 'अहम्' का उच्चारण नाभि से शुरू कर पांच रूपों में ले जाते हैं-नाभि, हृदय, तालु, बिन्दु और अर्धचन्द्र-ऊपर तक ले जाते हैं। इस उच्चारण से क्या प्रतिक्रिया होती है, उस पर भी ध्यान दें। योग ने मानसिक ग्रन्थियों के भेदन की पद्धति का विकास किया था। जब हमारा उच्चारण सूक्ष्म हो जाता है, उस समय ग्रंथियों का भेदन शुरू हो जाता है। आज्ञाचक्र तक पहुंचते-पहुंचते ध्वनि बहुत सूक्ष्म हो जाती है, सूक्ष्मतम हो जाती है और उन ग्रंथियों का भेदन भी शुरू हो जाता है। हमारी ग्रन्थियां, जो सुलझती नहीं हैं, वे ग्रन्थियां इन सूक्ष्म उच्चारणों के द्वारा सुलझ जाती हैं। वाक् संवर की दिशा जैन आचार्यों ने भी इस विषय पर विचार किया। उन्होंने कहा'सम्यक्-दृष्टि, विरति संयम और अप्रमाद-ये सारी स्थितियां विभिन्न उच्चारणों से होने वाले ग्रन्थि-भेद के द्वारा प्राप्त हो सकती हैं । ग्रन्थियों का भेदन होता है और ये स्थितियां विकसित हो जाती हैं। सम्यक्त्व की दृष्टि विकसित हो जाती है, व्रत की दृष्टि विकसित हो जाती है और अप्रमाद की दृष्टि विकसित हो जाती है । सूक्ष्म उच्चारण करने की जो एक विधि है, प्रक्रिया है, उसका विकास करते चले जाएं तो हमारी दिशा होगी वाक्-संवर की दिशा। वाकसंवर की दिशा का मतलब है-निर्विकल्पता की दिशा, विचार-शन्यता की दिशा । निविचार की दिशा में प्रयाण करने से पहले विचार का भी सहारा लेना पड़ता है । वस्तुतः हमें विचार ही निविचार तक पहुंचाता है। कोई भी विचारशन्य व्यक्ति निर्विचार की स्थिति में नहीं पहुंच सकता। लगता -कुछ अटपटा है कि विचार निर्विचारता की स्थिति में कैसे पहुंच सकता है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003056
Book TitleChitt aur Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size16 MB
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