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चित्त और मन
'अल्ला' का बौद्ध 'ओम्' का जाप करते हैं । प्रत्येक धर्म परम्परा का अपनाअपना जाप मंत्र होता है । प्रेक्षा ध्यान में अर्हम् का जाप होता है । इस प्रकार न जाने कितने प्रकार के जाप हैं। मंत्रशास्त्र के सैकड़ों ग्रन्थ हैं । उनमें बीजाक्षरों से सम्बन्धित हजारों-हजारों मंत्र हैं। उनके जाप का प्रभाव होता है, व्यक्ति और मन बदलता है, वृत्तियां और बीमारियां ठीक होती हैं। मंत्रशास्त्र का विकास शब्दों के आधार पर हुआ है । अच्छे शब्दों का चुनाव अच्छा प्रभाव पैदा करता है और बुरा शब्द बुरा प्रभाव पैदा करता है । शब्दों की योजना में भी जहां कहीं गड़बड़ी होती है, वहां अनर्थ हो जाता है । इसे 'दग्धाक्षर' कहा जाता है । एक व्यक्ति ने अपने ग्रन्थ की समाप्ति पर अन्तिम वाक्य लिखा था— नागोर में । इस ग्रन्थ की संपूर्ति नागोर गांव में हुई है । वह लिखने बैठा और लिखा- नागो रमे । अक्षर चार ही, पर लिखने का ढंग गलत हो गया । कुछ ही समय पश्चात् वह व्यक्ति पागल हो गया और नागो रमे - नग्न घूमने लगा ।
दुर्लभ है नियोजन
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शक्ति-शक्ति होती है । यदि उसके वाचक अक्षरों की संयोजना उपयुक्त होती है तो वह शक्ति वरदान बन जाती है और यदि संयोजना गलत होती है तो वही शक्ति अभिशाप बन जाती है । इसीलिए कहा गया —
अमंत्रमक्षरं नास्ति नास्ति मूलमनौषधम् ।
अयोग्यः पुरुषो नास्ति, योजकस्तत्रदुर्लभः ॥
ऐसा कोई अक्षर नहीं है, जो मंत्र न हो। ऐसा कोई मूल (जड़) नहीं है, जो औषधि न हो। ऐसा कोई मनुष्य नहीं है, जो योग्य न हो । प्रत्येक आदमी में योग्यता होती है । योजना करने वाला दुर्लभ है ।
यह योग करने की बात बहुत महत्त्वपूर्ण है । अक्षरों का योग मिलते संवाहक होता है । कुछ ऐसे मंत्र हैं, जो व्यथाओं को दूर
ही मंत्र बन जाता है और वह विपुल शक्ति का मंत्र हैं, जो मन को शान्ति देते हैं । कुछ ऐसे करते हैं ।
मंत्र का प्रभाव
बीदासर का एक भाई कैंसर से पीड़ित था । अत्यन्त पीड़ा में जब उसे आराधना सुनाई जाती तब वह उसमें इतना तन्मय हो जाता कि सारी व्यथा ही भूल जाता ।
मेरी संसारपक्षीया माता साध्वी बालूजी बहुत रुग्ण थीं। एक बार मैंने कहा- आत्मा भिन्न, शरीर भिन्न है, इस वाक्य का बार बार स्मरण करें | उन्होंने इसे मंत्र-वाक्य समझकर पकड़ लिया। वे अन्तिम अवस्था तक इससे बहुत लाभ उठाती रही ।
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