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ध्वनि का मन पर प्रभाव
तीर्थंकर बोलते हैं । दिगम्बर कहते हैं-तीर्थंकर बोलते नहीं, केवल ध्वनि निकलती है। इसमें मुझे वैज्ञानिकता लगती है। बहुत वैज्ञानिक बात है यह । वे बोलते नहीं किन्तु जो कहना चाहते हैं वह सब कुछ सब तक पहुंच जाता है । कोरी ध्वनि होती है, भाषा नहीं होती, किन्तु जितने लोग बैठे होते हैं, वे उस ध्वनि को अपनी-अपनी भाषा के रूप में समझ लेते हैं। श्वेताम्बर मानते हैं-तीथंकर बोलते हैं एक भाषा में । हिन्दी जानने वाले उसे हिन्दी में समझ लेते हैं, संस्कृत जानने वाले संस्कृत में और प्राकृत जानने वाले प्राकृत में समझ लेते हैं। हिन्दी जानने वाले समझते हैं कि वे हिन्दी में बोल रहे हैं । संस्कृत जानने वाले समझते हैं कि वे संस्कृत में बोल रहे हैं। प्राकृत जानने वाले समझते हैं कि वे प्राकृत में बोल रहे हैं। आदमी जानता है कि वे आदमी की भाषा में बोल रहे हैं और पशु समझते हैं कि वे पशु की भाषा में बोल रहे हैं। उनकी ध्वनि या वाणी को आदमी समझ जाता है, पशु भी समझ जाता है और देवता भी समझ जाता है । यह कैसे होता है ? क्या कोई अनुवादक बैठा है वहां ? नहीं, कोई अनुवादक नहीं है। यह स्वाभाविक परिणति है। इसे इस रूप में प्रस्तुत किया जाएवह ध्वनि है और वह ध्वनि विभिन्न भाषाओं में बदल जाती है, श्रोता अपनी-अपनी भाषा में उसे पकड़ लेते हैं । वक्ता को बोलने की आवश्यकता नहीं होती। वह जो कहना चाहता है, ध्वनि के माध्यम से कह देता है। मनोवर्गणा के पुद्गल इतने शक्तिशाली होते हैं कि वे विभिन्न भाषाओं में बदल जाते हैं और अपना काम कर देते हैं। विकास का आधार
__नाद-विज्ञान के विकास का आधार यही है । नादानुसंधान का प्रयोग किया गया। ध्यान करने वाले साधक जब ध्यान की गहराई में जाते हैं, तब नाद का अनुसंधान करते हैं । उन्हें विचित्र प्रकार के शब्द सुनाई देते हैं। कभी चीत्कार का शब्द, कभी नगाड़े का और कभी बाजे या भेरी का शब्द सुनाई देता है । जब साधक सूक्ष्म शक्ति का विकास करता है तो उसे लगता हैसारा आकाश शब्दमय है । इसी आधार पर महान् वैयाकरण भर्तृहरि ने शब्द को ब्रह्म कहा है-शब्दः ब्रह्म । भारतीय दर्शन में शब्द पर सूक्ष्म मीमांसा हुई है। किसी ने शब्द को नित्य माना, किसी ने उसे अनित्य माना और किसी ने शब्द को आकाश का गुण माना। महर्षि पतंजलि ने कहा-शब्द
और आकाश—दोनों पर संयम करने से स्वर की शक्ति बढ़ती है। मंत्रशास्त्र का आधार-शब्द
धर्म के क्षेत्र में आने वाला, साधना करने वाला हर व्यक्ति जाप करता है। जैन 'नमस्कार महामंत्र' का, सनातनी 'गायत्री मंत्र' का, मुसलमान
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